मृत्यु के बाद एक पल
उसने लरजते हुए हांथों से मेरी ओर एक लिफ़ाफा बढ़ाया उस वक्त उसकी आंखों में वह नहीं थी, मैने सोचा, क्या ही हो सकता है! उस पल, जब होंठों पर बर्फ़ की सिल्ली रख जाय, कहीं कुछ ऐसा तो नहीं; जो वापसी का दरवाज़ा खोल दे. उधार की आंखों से मैने उसे कांपते हुए देखा लिफाफा मेरी उंगलियों से टकरा चुका था, खुद पर नंगा होने की हद तक बेशर्मी डालने की कोशिश कर लिफ़ाफा खोलते हुए मैने देखे; सिर के कटे हुए कुछ बाल उसके बच्चे के, उस पल बर्फ फिर बरसी आसमां से नहीं आंखों से ।। PC Wikipedia @मानव कौल की बातचीत सुनते हुए
आदरणीय अपर्णा जी आप बहुत अच्छा लिखती है.भावों का प्रवाह अत्यंत सुंदर है।मेरा सुझाव है कि तस्वीरों में लिखने के बजाय सीधे पेज पर लिखिए,तस्वीरों पर कई
जवाब देंहटाएंबार शब्द पढ़ने में नहीं आते है।
स्वेता जी, सुझाव देने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया. आगे से सीधे ब्लोग पर ही लिखूंगी.
हटाएंvery nice heart touching lines
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंThanks sonu jee.
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