तुम्हारा उपहार



आज तुम्हारी रजिस्ट्री मिली है मुझे,
कुछ प्यार के आभूषण हैं
कुछ सपनों की पोशाकें,
वही जो तुमने अपनी दहलीज़ के नीचे दबा रखी थीं.
मैंने तुम्हारे उपहार पहन लिए है,
देखो न कैसी लग रही हूँ?
वैसी ही न!
जैसी एक शाम......
कॉफ़ी की अंतिम बूँद में छोड़ आये थे मुझे.....
या जैसी दबा आये थे......
पार्क में सूखे पत्तों के नीचे,
मै तो अब भी वैसी ही हूँ;
जैसी तुमने कैद कर रखा है.....
अपने मखमली संदूक में
और थोड़ा सा अपने तकिये के नीचे.....
अपने चेहरे पर....
तुम अब भी मुझे पढ़ते हो हर रोज़......
मेरा कुछ हिस्सा तुम अपनी जेबों में भी रखते हो;
और कुछ अपने दोस्तों के कानों में.
तुम्हारे बैंक बैलेंस में.......
बढ़ते हुए शून्यों की जगह मै ही तो हूँ;
फिर भी!
यंहा-वंहा रखकर क्यों भूल जाते हो मुझे?
इन उपहारों के साथ मुझे भी क्यों न भेज दिया मेरे पास?  
शायद मैं ‘मै’ हो पाती और तुम ‘तुम’.

                                           (चित्र साभार google)                                      

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. इस कविता को लिंक करने के लिये हार्दिक आभार दीदी.आप का पैगाम देखकर दिल खुश हो गया.जरुर शामिल रहूंगी.

      हटाएं
  2. उत्तर
    1. शुक्रिया रिंकी जी, ब्लोग पर आपका स्वागत है. आती रहियेगा.

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  3. Sabse pahle badhai link ke liye.
    bahut achhi ban padi hai tumhari ye kavita. Top ten mein rakhungi ise.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शुक्रिया सखी, तुम न होती तो शायद ये कविता ऐसी न हो पाती.

      हटाएं
  4. अद्भुत बिम्ब संयोजन और मृदुल अहसासों से सजी कविता! बधाई !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक आभार अग्रज.ब्लॉग पर आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहता है . सादर

      हटाएं
  5. उत्तर
    1. मीना जी ब्लॉग पर आने और कविता पर प्रतिक्रया व्यक्त करने के लिए सादर आभार

      हटाएं
  6. बहुत सुंदर कविता आपकी अपर्णा जी।भाव और शब्दों का सुंदर संयोजन।बधाई स्वीकार करें।

    जवाब देंहटाएं
  7. प्यार को किसी उपहार की जरुरत कहाँ होती है
    सब साजो सामान एक तरफ और प्यार एक तरफ

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  8. परिवेश में छाई उठापटक के बीच बनती सोच और शिकवे में निहित नसीहत।
    सटीक चिंतन।
    बिम्ब और प्रतीकों को ख़ूबसूरती से संजोया है आपने।
    ऐसा हृदयस्पर्शी सृजन ज़ारी रहे आदरणीय अपर्णा जी।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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