हम सफेदपोश!



आओ न थोड़ी सादगी ओढ़ लें
थोड़ी सी ओढ़ लें मासूमियत
काले काले चेहरों पर थोड़ी पॉलिश पोत लें
नियत के काले दागों हो सर्फ़ से धो लें.

उतार दें उस मज़दूर का कर्ज
जो कल से हमारे उजाले के लिए आसमान में टंगा है
भूखा प्यासा होकर भी काम पर लगा है.
खेतों में अन्न उगाकर दाना दाना दे जाता है
बाद में क़र्ज़ से खुद ही मर जाता है
हर छोटी-बड़ी घटना पर जो आवाज उठाते हैं
हमारे सनातन मौन से मुंह की खाते हैं.
कभी गाँव में कभी जंतर मंतर पर भीड़ लगाते हैं
अपना पेशाब पीकर हमें डराते हैं.


खुदकुशी करके हमारा क्या बिगाड़ लेंगे
हिंसक रूप धरकर भी हमसे क्या पा लेंगे
मारेंगे अपने ही भाई बिरादरों को!
पुलिस में सेना में उन्हीं के रिश्तेदार हैं
हम तो जाने -माने मक्कार हैं
उन्हीं के लिए गड्ढा खोद उन्हीं के घर खाते है
हर घटना पर 'कायराना हरकत है ' कह साफ़ मुकर जाते हैं.

कब तक उन्हें  सब्सिडी का चोखा खिलाएंगे
कभी तो उनको असली कीमत बताएँगे
वो कहते हैं गज़ब की मंहगाई है
जानते नहीं इसमें उन्ही की जग हंसाई है
सरकारी अस्पतालों में भीड़ लगाते हैं
कुछ हो जाए तो सरकार को गरियाते हैं

ये नहीं कि प्राइवेट डॉक्टरों के पास जाएँ
उन्हें  भी कुछ अच्छी  रकम खिलाएं
बच जाएंगे बच्चे तो क़र्ज़ भर ही देंगे
घर -खेत बेच-बांच शहर को चल देंगे
ऊंची ऊंची बिल्डिगों के लिए ईंट-गारा ढोएंगे
आसमान की चादर ओढ़ फुटपाथ पर सोयेंगे
खुशनसीब हुए तो मलबे में दब जाएंगे
भूख और बेहाली से छुट्टी पा लेंगे
न अनशन करेंगे , न हक़ के लिए लड़ेंगे
न शब्दों का आतंक फैलाएंएगे
न हमारे खिलाफ एकजुट हो पाएंगे।

हर पांच साल में चुनाव हो ही जाएगा
हम नहीं तो हमारा भाई बंधु ही आएगा
कुछ हमने खाया कुछ वो भी खायेगा
मंच पर न सही बाद में हमारा ही गुण गाएगा।
हमें क्या हम तो जब चाहे कार्ड स्वाइप कर लेंगे
उन्ही के पैसों से अपनी जेबें भर लेंगे।
उन बेवकूफों को कौन समझाए!
घर में , खेत में, गली में,चौक में
ज़िंदाबाद - मुर्दाबाद कर हमारा क्या बिगाड़ लेंगे
हम तो जब चाहे उड़ान भर लेंगे।

(Image credit to google)



















टिप्पणियाँ

  1. धन्यवाद दिव्या जी, ब्लॉग पर आपका इंतज़ार रहेगा. शुक्रिया

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  2. वाह्ह्... लाज़वाब कविता अपर्णा जी आपके आक्रोश व्यक्त करने का नायाब लेखन बहुत पसंद आया।मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ जी।

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 10 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. मेरी रचना को मान देने के लिये मै आपका हार्दिक आभार प्रकट करती हूं. सादर

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  5. ब्लॉगर अनुसरणकर्ता बटन भी उपलब्ध करायें। सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  6. गहरा कटाक्ष ! हर क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करती रचना ! बधाई अपर्णा जी ।

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  7. बहुत ही लाजवाब....
    समाज के सत्य को उकेरती प्रभावशाली अभिव्यक्ति...

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  8. प्रिय अपर्णा -- एक लोक कहावत है - कि नकटे [अर्थात बेशर्म ] की नाक कटी -- और सवा हाथ और बढी !!!!! उसी विचार को आगे बढाती हुई आपकी ये व्यंगात्मक रचना बहुत खूब है | सचमुच सफेदपोशों की निर्लज्जता का सम्राज्य बहुत बड़ा है | और उसकी नींव है उनकी बेबाक ,संवेदन हीन सोच !!चाहे किसान स्वमूत्र पियें अथवा आम आदमी महंगाई से त्रस्त हो -- उनकी बला से !!!! चोर -चोर मौसेरे भाई --- ढूध मलाई बाँट के खायी !!! उनकीओढ़ी हुई मासूमियत लोगों को हर पांच साल बाद बरगलाती रहेगी| सफेदपोश अपना प्रपंची चेहरा बदलकर आते रंहेगे| रचनात्मक शिल्प में लिखी आपकी रचना की जितनी सराहना करूं --उतनी कम है | कितनी सरलता से हलके फुल्के अंदाज में बहुत ही सटीक व्यंग है इस प्रपंची व्यवस्था पर | बहुत बधाई और सुखद भविष्य की मधुर कामना ------

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  9. रेणु दी आप की इस व्याख्यापरक प्रतिक्रिया से हौसला बंधता है कुछ और बेहतर लिखने के लिये. कृपया ब्लोग पर आती रहें . आप सब अनुभवी लोगों के उत्साहवर्धन से लेखनी में जान आ जाती है . आप का बहुत आभार. सादर

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