लंच बाक्स से झांकता है समाजवाद


बच्चों के लंच बाक्स से झांकता है समाजवाद,
कि कुछ डिब्बों में रखी होती हैं करारी- कुप्पा तली हुयी पूरियां 
और कंही, 
चुपके से झांकती है तेल चुपड़ी तुड़ी-मुड़ी रोटी,
कुछ बच्चे खाते हैं चटखारे लेकर-लेकर 
बासी रोटी की कतरने, तो कुछ;
देशी घी में पगे हलवे को भी देखकर लेते हैं  
ऊब की उबासी,
ये सिर्फ लंच बाक्स नहीं हैं ज़नाब!
ये हैं उनकी बाप की कमाई का पारदर्शी नक़ाब,
माँ की सुघड़ता का नमूना,
और कुक की नौकरी कर रही माओं की मजबूरी लिखी स्लेट;
जो दूसरों के टिफिन को लज़ीज़ पकवानों से सजाने से पहले, 
जल्दी-जल्दी ढून्सती हैं अपने बच्चों के टिफिन में 
रात के बचे चावलों को बिरयानी की शक्ल में;
और करती हैं मनुहार,
प्यार से खाली कर देना डब्बा;
वरना मेरी आत्मगलानि मुझे जीने नहीं देगी। 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर भाव हैं अर्पणाजी इस कविता के! बधाई और आगे की रचनाओं की शुभकामना!!!

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  2. अपर्णा जी यथार्थ दर्पण होती है आपकी हर अभिव्यक्ति समाज और सत्य के नजदीक दिल पर सीधा प्रहार करती
    साधुवाद।
    शुभ संध्या।

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  3. बहुत सुंदर सत्य को दर्शाती अभिव्यक्ति..

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  4. समाजवाद....या एक निम्नमध्यमवर्गीय स्त्री की मनोव्यथा कहे....बहुत लाज़वाब लिखा अपर्णा जी, आपकी रचनाओं के मारक क्षमता में उतरोत्तर वृद्धि हो यही मेरी दुआ है।बहुत सारी शुभकामनाएँ है मेरी।सस्नेह।

    आपकी रचना के सम्मान मे-
    फर्ज और भावों की चक्की में
    जीवन गाड़ी हाथों से खींचती
    टिकाकर पलको पर बोझिल मन
    सहज होने का दिखावा करती
    खोखली मुस्कान को ओढ़कर
    जीती है वो क्योंकि जीना हैं

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  5. आदरणीय श्वेता जी, आप की प्यार भरी सराहना से मै उत्साह से भर जाती हूं. आप का हृदयतल से आभार

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  6. आदरणीय दी, मेरी कविता को मंच पर शामिल करने के लिये सादर आभार.

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  7. सत्यता के पहलू को आपने धरातल पर उतार दिया आदरणीया लाज़वाब !

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  8. यथार्थ‎ का सुन्दर‎ चित्रण‎ .

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  9. काफी उहाफोह वाली मनोदशा हो जाती है,
    जब लंच बाक्स शेयर करना पड़ता है,जबकी हमे ज्ञात हो कि आज भी रोज की तरह वही आलु की सुखी करी ओर सफेदी ओड़े रोटी अंदर विराजमान होगी....! वाक ई भारतीय घरो की आर्थिक समरसता को दर्शाती आपकी रचना बहुत अच्छी लगी....!

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  10. प्रिय अपर्णा -- आपको धारदार शैली और मार्मिक विषय -- दोनों से ही मन को छूने वाली रचना निकली है | संवेदनाओं से भरे मन को नमन

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  11. बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना.....
    वाह!!!

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