प्रेम का ताजमहल


इस अरगनी पर टंगी हैं
तुम्हारी यादें….
हमारा प्रेम!
न जाने कंहा निचुड़ गया,
बसा है अब भी तुम्हारी साँसों का सोंधापन
दीवारों पर तुम्हारे हांथों की छाप
ज़िंदा है,
हमारे प्रेम के अवशेष बिखरे हैं चंहु ओर......
कि.... ये कमरा

हमारे प्रेम का ताजमहल है.

टिप्पणियाँ

  1. प्रिय अपर्णा ---- बदले वक्त के साथ बदलते रिश्तों की खोयी चमक को खूब शब्दांकित किया आपने |शुभकामना और बधाई मर्मस्पर्शी रचना के लिए |

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