आहिस्ता -आहिस्ता
समय हो तो अपनी हथेली पर भी रख लेना एक फूल, घूम आना स्मृति के मेले में, कहानी की किताब में झांक कर, कर लेना बातें ' पंडित विष्णु शर्मा ' से, या घर ले आना ' नौकर की कमीज़ ' सुन लेना रजनीगंधा की फूल या ठुमक लेना ' झुमका गिरा ' की धुन पर कह लेना खुद से भी "Relax ! चंद कदम ही तो हैं, चल लेंगे आहिस्ता-आहिस्ता हम भी, तुम भी।।
शानदार प्रस्तुति. थोड़े से अल्फ़ाज़ काफ़ी है मौजूदा परिवेश की तस्वीर सामने रखने के लिये. रचनाकार का दायित्व है कि हालात का दस्तावेज़ी ज़िक्र प्रस्तुत करे.
जवाब देंहटाएंसटीक चिंतन से परिपूर्ण असरदार रचना.
बधाई एवं शुभकामनायें.
ब्लॉग सेतु से पता चला आज आपका जन्म दिवस है.
जन्म दिवस की मंगलकामनाएें.
लिखते रहिये.
आदरणीय रवीन्द्र जी, इतनी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिये सादर आभारी हूं.साहित्य समय का साक्षी है यही सोच कर समय को लिखना चाहती हूं. आप जैसे लोग जब प्रशन्शा के दो शब्द भी बोलते हैं तो और लिखने का उत्साह प्रबल होता है .शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद
हटाएंBahut achhi prastuti.
जवाब देंहटाएंजनन दिन की शुभकामनाएँ हालाँकि देरी से ...
जवाब देंहटाएंगहरी रचना कुछ शब्दों में सदी की बात ... सत्य का सामना ज़रूरी है