अँधेरे की चादर
रात और दिन में फर्क है कि... रात में पोते जा सकते हैं नंबरप्लेट, अंधेरे की चादर तले सुलाए जा सकते हैं बोलने वाले ज़िस्म, ट्रकों और ट्रेनों के चक्के मोड़े जा सकते हैं श्मसान की ओर, रात पर्दा है गुनाह पर रात पर्दा है सच पर.... रात में बंद होता है संसद और न्यायालय.... उठो कि रात में सो जाता है ज़मीर, इंसान जागने के पहले होता है मूर्छा में, रात में हाँथ को हाँथ दिखता नहीं, तो सच की क्या बिसात! अंधेरे में खून और पानी एक सा न रंग, न दर्द ,न तड़प कुचल दो सच को...