क्रूर काल
मै इस बार उन देवों से बहुत दूर रही जो मंदिरों में विराजते है, जो मठों में साधना में लीन हैं, जो चर्चों और मस्जिदों में ठहरे हैं और जो कुलों की रखवाली के लिए हर देहरी पर विराजमान हैं, मैंने इस बार ईश्वर को तड़पते देखा, सड़कों, पुलों और अंधेरी कोठरियों की पनाह लिए, भूखे बच्चों और गर्भवतीस्त्रियों के कोटरों में, ईश्वर मरता रहा ; करता रहा विलाप.... सभ्य समाज की क्रूरता ने मार दिया ईश्वर का ईश्वरतव, सर्व शक्तिमान सत्ता ने अपने सबसे बुरे दिन देखे... वे बंदीगृह के सबसे महान दिन थे... ©️Aparna Bajpai Picture credit Google