परदेश

 पानी संग निचुर जाती हैं आंखें
सूर्य को अर्घ्य देती मां,
मांगती है सलामती की दुआ,
सुखी रहे लाल, घर परिवार,
भरा रहें अंचरा, सुहागन बनी रहे पतोहु,
बिटिया बसी रहे ससुराल, 
और का मांगी छठी मैया!
हर साल भर दियो अंगना!

विदेश गए लाल की आंख,
टिकी है चमचमाती स्क्रीन पर
नदी , घाट, छठ, माई, दौरा 
ठेकुआ , केरा और का...
दो बूंद आंसू टपक जाते हैं स्क्रीन पर
अब अर्घ्य पूरा हो गया...
बिछोह और छठ
मैया और लाल की दूरी
सब समझे मजबूरी।।

#kavita
#chhathpuja
#aparnabajpai


टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 23 नवंबर नवंबर नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी सृजन।

    जवाब देंहटाएं

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