tag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post642937137526126956..comments2024-03-19T14:59:12.169+05:30Comments on बोल सखी रे: अच्छे बच्चेअपर्णा वाजपेयीhttp://www.blogger.com/profile/11873763895716607837noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-51921597972229733862018-01-31T16:00:24.802+05:302018-01-31T16:00:24.802+05:30बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....
वाह!!!बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना....<br />वाह!!!Sudha Devranihttps://www.blogger.com/profile/07559229080614287502noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-67953114691168695102018-01-30T16:41:14.496+05:302018-01-30T16:41:14.496+05:30आदरणीय कुसुम दी , कविता के बहाने आपने इतना महत्वप...आदरणीय कुसुम दी , कविता के बहाने आपने इतना महत्वपूर्ण उद्धरण पढ़ने के लिए दिया इसके लिए साधुवाद। हर भूखे पेट के लिए कविता सिर्फ भोजन है । हम वही चाहते हैं जिसकी जरुरत हमें सबसे ज़्यादा होती है । कई सालों तक साक्षी रही हूँ ऐसी भूख की कि कलम जब उठती है तो वही लिखती है जो इन आँखों ने भोगा है । बच्चे अभावों में भी इस तरह जीते हैं कि बड़ों बड़ों को ज़िंदगी का फ़लसफ़ा सीखा देते हैं ।<br />कविता पर आपकी राय मिलती है तो लिखने का उत्साह जगता है । सादर आभार अपर्णा वाजपेयीhttps://www.blogger.com/profile/11873763895716607837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-58215440315409791822018-01-30T14:51:08.982+05:302018-01-30T14:51:08.982+05:30जहां पेट नही भरता वहां संस्कार की बाते बस थोथा दिख...जहां पेट नही भरता वहां संस्कार की बाते बस थोथा दिखावा है।<br />यथार्थ रचना व्यंग और मर्म पर प्रहार करती।<br /> गरीबों का कावय ,समाज ,और रचनात्मकता कितनी।<br />एक उद्धरण पढें। <br /><br />"भारत के विस्तृत आकाश के नीचे मानव -पक्षी रात को सोने का ढ़ोंग करता है, भुखे पेट उसे जरा भी नींद नही आती और जब वह सुबह बिस्तर से उठता है तब उसकी शक्ति पिछली रात से कम हो जाती है।<br />लाखों मानव-पक्षीयों को रात भर भूख प्यास से पीड़ित रहकर जागरण करना पड़ता है अथवा जाग्रत सपनों मे उलझे रहना पड़ता है ।यह अपने अपने अनुभव की, अपनी समझ की, अपनी आँखों देखी अकथ दुखपूर्ण <br />अवस्था और कहानी है। कबीर के गीतों से इस पीड़ित मानवता को सान्त्वना दे सकना असम्भव है ।यह लक्षावधि भूखी मानवता हाथ फैलाकर, जीवन के पंख फड़फड़ाकर<br />कराहकर केवल एक कविता माँगती है _पौष्टिक भोजन ।"<br /><br />श्री विष्णुप्रभाकर जी के एक उपन्यास<br />" तट के बंधन " से लिया ये एक पत्र है जो महात्मा गांधी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को लिखा था ।मन की वीणाhttps://www.blogger.com/profile/10373690736069899300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-67208102308530583842018-01-30T14:03:04.653+05:302018-01-30T14:03:04.653+05:30शुक्रिया श्वेता जी
शुक्रिया श्वेता जी <br />अपर्णा वाजपेयीhttps://www.blogger.com/profile/11873763895716607837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-10974466254519082172018-01-30T07:59:06.530+05:302018-01-30T07:59:06.530+05:30हृदयस्पर्शी रचना अपर्णा जी।
भावुक करती पंक्तियाँ।हृदयस्पर्शी रचना अपर्णा जी।<br />भावुक करती पंक्तियाँ।Sweta sinhahttps://www.blogger.com/profile/09732048097450477108noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-27634399352218929042018-01-29T15:02:01.528+05:302018-01-29T15:02:01.528+05:30सादर आभार शुभा दीसादर आभार शुभा दीअपर्णा वाजपेयीhttps://www.blogger.com/profile/11873763895716607837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1468267779286801048.post-87516633288327459412018-01-29T14:54:32.428+05:302018-01-29T14:54:32.428+05:30वाह!!क्या खूब लिखा है।वाह!!क्या खूब लिखा है।शुभा https://www.blogger.com/profile/09383843607690342317noreply@blogger.com