एक पत्नी की पति से शिकायत
बड़े बेपरवाह हो !
सुनते ही नहीं
क्या कह रही हूँ ?
क्योँ लड़ रही हूँ ?
गुनते ही नहीं।
आटा नहीं है दाल ख़त्म
रसोई से चीनी की मिठास जाने कब से गायब है
तेल की तो बात ही छोड़ दो
अब तो नमक के भी लाले है ।
काम पर जाते हो
पैसे कंहा उड़ाते हो
दारु की बोतल जेब में रख
घर क्यों ले आते हो ?
बच्चे बड़े हो रहे
क्या सोचेंगे?
उन्हें क्या हम यही सिखाएंगे।
कपड़ों पर पैबंद लग गए
बर्तन धीरे धीरे बिक गए
अब चादर भी नहीं है सिर पर
कब चेतोगे ?
कुछ पैसे इधर भी फेंक दे दो
कुछ तो बचाऊं , कुछ तो संवारूँ
बच्चों को भर पेट खिलाऊँ
जरुरत पर दवा तो ले आऊं।
तुम क्या जानो !
भूखा बच्चा जब रोता है
रात रात भर छाती नोचता है
तुम तो टुन्न पड़े रहते हो
भूखे पेट गज़ब सोते हो
मेरी ही किस्मत फूटी थी
जो तुम मिल गए
प्रेम भरे दिन न जाने कब के फिर गए।
तुम कहते हो मै लड़ती हूँ
अपने हक़ की ही कहती हूँ
सुनो न सुनो मर्जी तेरी
जब तक ध्यान नहीं दोगे तुम
मै तो कहूंगी
तुमसे नहीं तो किससे लड़ूंगी ??
Good one
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" 17 अक्टूबर शनिवार 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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