एक चिड़िया का घर
एक चिड़िया उड़ती है
बादलों के उस पार..
उसकी चूं-चूं सुन,
जागता है सूरज,
उसके पंखों से छन कर,
आती है ठंढी हवा,
गुनगुनाती है जब चिड़िया,
आसमान तारों से भर जाता है,
धरती से उठने वाली;
साजिशों की हुंकार सुन;
चिड़िया जब-तब कराहती है,
उसकी आँखों से बहती है आग,
धरती पर बहता है लावा,
रोती हुई चिड़िया को देख
उफनते हैं ज्वालामुखी,
सूख जाती हैं नदियां,
मुरझा जाते हैं जंगल,
आजकल चिड़िया चुप है!
उदास हैं उसके पंख,
चिड़िया कैद है रिवाज़ों के पिटारे में
ज़रा गौर से देखो
संसार की हर स्त्री की आँखें!
वह चिड़िया वंही रहती है....
(Image credit google)
(Image credit google)
रिवाज भी सारे स्त्री के लिए ही बने हो जेसे
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना.
बार बार संज्ञा की जगह आप सर्वनाम का इस्तेमाल करें तो बेहतर रहेगा.
कविता और मैं
आदरणीय रोहितास जी, मेरे विचार से कविता में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण ये सब मात्र प्रतीक चिन्ह होते हैं जो भाव को अभिव्यक्ति देने के लिए इश्तेमाल किये जाते हैं। इस कविता में चिड़िया मात्र चिड़िया नहीं है वह प्रतीक है कई बातों की। मैं अपनी ही कविता की व्याख्या नहीं करना चाहती। कविता वही है जो पाठक समझे। लेखक ने क्या लिखा या क्या सोच कर लिखा इसके कोइ मायने नहीं होते।
हटाएंआपके सुझाव के लिए आभार
सादर
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.05.17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2987 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
मेरी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार दिलबाग जी।
हटाएंसादर
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन हिंदी पत्रकारिता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब ... नारी मन भी तो चिड़िया की तरह है ... पूरे परिवार, समाज को ख़ुशियाँ देता है ...
जवाब देंहटाएंउसके मौन होने पे और बो भी झूठे रीति रिवाजों के लिए ... ऐसे समाज का पतन ही हो सकता है बस ... गहरी रचना है ...
वाहः बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंस्त्री की मनोव्यथा का उत्कृष्ट चित्रण
प्रिय अपर्णा -- नारी की आँखों में बसी वो चिड़िया शायद ही कभी हंसती हो | यही शायद एक नियति तय करदी है समाज ने नारी की | बहुत प्रभावी रचना | सस्नेह |
जवाब देंहटाएंउस चिड़िया की आँखें
जवाब देंहटाएंहमेशा रहती हैं
कौतूहल से भरी।
बहुत सुंदर!!!
आदरणीय ध्रुव जी ,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।सादर
.... नारी मन भी तो चिड़िया की तरह है !!
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