बेमतलब सा!
बेमतलब सा!
जाने क्यों मै तड़प रहा हूं,
इधर उधर क्यों भटक रहा हूं
बेमतलब सा !
आवेदन की अंतिम तारीख
लगी कतारें लंबी लंबी
मै भी उनमे जूझ रहा हूं
बेमतलब् सा!
ना कंही पंहुचा,
ना कंही जाना
फ़िर भी मीलों दौड़ रहा हूं
बेमतलन सा !
भूख लगी तो दाल पकाइ
भात पकाया
आलू संग संग खुद को भी मै;
छील रहा हूं
बेमतलब सा !
बात चली जब युद्ध शांति की
नेता बोले चैनल बोले
मै भी संग संग भौक रहा हूं
बेमतलब सा !
जिबह हो रही गायें बकरी
रोती अम्मा रोते अब्बू
मै भी उन संग कलप रहा हूं
बेमतलब सा !
ईद हुई और मनी दीवाली
हुई अज़ाने घंटी डाली
मै भी संग संग फुदक रहा हूं
बेमतलब सा !
आसमान में उड़ी पतंगे,
मनझा काटे संझा जोडे
मै भी संग संग दौड़ रहा हूं
बेमतलब सा!
न कुछ कहना, न कुछ सुनना
न कुछ गुनना, न कुछ धुनना
फ़िर भी स्याही पोत रहा हूं
बेमतलब सा !
जाने क्यों अब लगता ऐसा
सांसे अपनी जान पराइ
फ़िर भी जीवन सींच रहा हूं
बेमतलब सा!!
बहुत उम्दा ...
जवाब देंहटाएंA beautiful poem
जवाब देंहटाएंWell written
Awesome writing
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंwaah behad khubsurat
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 10/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
वाह!!लाजवाब!
जवाब देंहटाएंइसी भागदौड़ में एक एक आम इंसान कट जाया करती है | कुछ मतलब की बातों में और कुछ जीने के मजबूरी के साधन जुटाते - | प्रिय अपर्णा बहुत अच्छा लिखा आपने | कहीं व्यंग तो कहीं भीतरी वेदना भरी पंक्तियाँ !!! सराहनीय रचना के लिए आपको बधाई और शुभकामनाये | साथ ही मेरा प्यार |
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