लाश का इंतजाम
कहानी - लाश का इंतजाम
आख़िरी विकल्प लाश को कंधे पर उठाना ही था. प्यारी कल रात सरकारी
अस्पताल के बाहर जमीन पर तड़प तड़प कर मर गई . कोई नहीं था जो अस्पताल के
कर्मचारियों के ज़मीर को झिंझोड़ कर जगा सकता. कह सकता उनसे की बाहर जो औरत तड़प रही
है उसका हक़ है कि उसे अस्पताल के भीतर एक बेड मिले. वो सुरक्षित जगह पर , सुरक्षित
हाथों से और सुरक्षित माहौल में अपने बच्चे को जन्म दे . कौन कहां तड़प रहा है ,
कौन कंहा मर रहा है किसी से क्या मतलब? मरता है तो मरने दो , सरकारी बिल्डिंग के
भीतर तो नहीं मरा है जो किसी की जवाबदेही होगी.
कल रात प्यारी को तेज दर्द उठा , लगा की समय हो गया है . दाई घर में
नहीं थी , अब अस्पताल ले जाने के सिवा कोई और उपाय नहीं था. इतनी रात में जंगल से
सात किलोमीटर दूर , बरसात का मौसम ,
रास्ते में नदी पार करना , साईकिल के अलावा कोई साधन नहीं ..... कैसे ले जाये
प्यारी को अस्पताल .... बबुई समद सोच में डूबा था. लगता है अब प्यारी का भी
आख़िरी वक़्त आ गया. क्या ये भी छोटू और
नन्हका के पास चली जायेगी. बबुई जैसे जम गया था. कौन मदद करेगा? लेकिन चुप बैठ भी
तो नहीं सकता .
उसे दूर से लालटेन लेकर आता कोई दिखा. लगता है दाई आ गई. बबुई दौड़ा
और दाई के पैरों पर गिर पड़ा. दाई कुछ कर.
इस बार बचा ले प्यारी को . तेरा ही आसरा है. “देखती हूँ , धीरज रख बाबू, कुछ नहीं
होगा प्यारी को”. दाई जल्दी से झोपड़ी के अन्दर गई .
प्यारी जमीन पर चित पड़ी थी. खून बहे जा रहा था. दाई ने उसे
हिलाया प्यारी ! ओ प्यारी ! कब दर्द उठा
है ... प्यारी होश में हो तब तो बोले.... दाई भीतर से ही चिल्लाई ... बबुई !
प्यारी बेहोश है , हालत गंभीर है , अस्पताल ले जाना पड़ेगा.
तब तक गाँव के कुछ लोग इकट्ठे हो गए
थे. दाई ने एक खटिया पर बिस्तर डाला औरबबुई को बोली जा प्यारी को उठाकर ले आ , खटिया पर लाद
कर अस्पताल ले जायेंगे. गाँव के कुछ आदमी तैयार हो गए जाने के लिए. रात ग्यारह बजे
खटिया पर प्यारी को लाद कर चार आदमी चल दिए अस्पताल. पीछे सात -आठ आदिवासी घरों की
वह बस्ती साथ हो ली ( कुछ बुजुर्ग और बच्चों को छोड़ कर) न जाने कब किसकी जरुरत पड़
जाये .
झमाझम बारिश में आगे आगे लालटेन लिए हुए दाई और पीछे पीछे दस बारह
लोग पहाड़ से उतरकर नदी पार किये. गिरते पड़ते हांफते हुए किसी तरह अस्पताल पंहुचे .
आसमान में सूरज लाल रंग बिखेरना शुरू कर चुका था. सुबह के चार बजे अस्पताल के बाहर
वह आदिवासी टोली डॉक्टर को खोजती हुई...
अस्पताल में-
रात ड्यूटी वाली नर्स जम्हाई लेती हुई बाहर आयी, इतनी सुबह सुबह कौन
आ गया. सारे बेड फुल हैं. कोई और अस्पताल ले जाओ. जगह नहीं है यंहा. बबुई उसकी मिन्नतें करने लगा . मैडम जी एक बार देख
लीजिये , मर जायेगी मेरे पत्नी. बड़ी मुश्किल से यंहा तक आये हैं . “ हम क्या करें?
डॉक्टर नहीं है अभी , आठ बजे तक आयेगी .
उनका बच्चा बीमार है .अभी एडमिट नहीं कर सकते. इतना कह कर नर्स अन्दर चली गयी. सब लोग सकते में
. अब क्या करें. बड़े अस्पताल जा नहीं सकते . पैसा लगेगा.
प्यारी तड़प रही है खटिया पर . दाई चिल्लाई बाबू! चादर बिछाओ . प्यारी
को जमीन पर लिटाओ और दौड़ती हुई फिर अस्पताल के भीतर गई . नर्स को खींचती हुई बाहर
लाइ और चिल्लाने लगी .. मर जायेगी बेचारी , शरीर में खून नहीं बचा है कुछ तो करो मैडम जी ! उन लोगों के चिल्लाने से
पूरा अस्पताल हिल गया लेकिन नर्स ने प्यारी को छुआ तक नहीं. उन लोगों के सामने प्यारी
उस दम तोड़ दिया. आसपास भीड़ लग गई. बबुई प्यारी का सिर अपनी गोद में रखकर वंही दहाड़
मार- मार कर रोने लगा.जो लोग रात में उसे जिंदा ले कर आये थे वे सन्न थे . सब चुप
. सबकी आँखों में सन्नाटा पसर गया था.
मर गयी प्यारी और मर गयी उनकी उम्मीद. लाश अस्पताल के बाहर पडी
है . अब लाश को घर ले जाना है . “लाश को
जल्दी हटाओ , नहीं तो मेरी नौकरी चली जायेगी “ . नर्स चिल्लाने लगी.
“मैडम जी गाडी का इंतजाम कर दीजिये , लाश को घर तक ले जाना है , दाई
गिदगिड़ाई “. गाडी नहीं मिल सकती . मरीज
अस्पाल में भरती नहीं थी . गाडी सिर्फ भारती मरीजों को मिलती है . इतना कह कर नर्स
अस्पताल के अन्दर चली गयी.
बबुई उठा , उसने प्यारी की लाश को अपने कंधे पर लाद लिया और चल दिया
अपने घर की ओर...पीछे पीछे वह टोली जो रात में उम्मीद लेकर आयी थी कि डॉक्टर बचा
लेंगे उस गाँव की सबसे मिलनसार औरत को .... अब लाश के पीछे चल रहे थे.
पत्नी का शव कंधे पर लादे
हुए बबुई बुदबुदाता जा रहा है “दाई झूठ कहती है . ये लोग हमारी मदद क्योँ करेंगे ,
ये हमसे बात नहीं करना चाहते , हमें छूना नहीं चाहते . हम जंगली इनके लिए कोई
मायने नहीं रखते. एक बार देख लेती नर्स तो शायद बच जाती प्यारी . गाँव में गाडी
नहीं थी तो हम ले आये इसे खटिया पर लाद कर. यहाँ गाड़ी खड़ी है लेकिन हमें नहीं मिल
सकती. कोई बात नहीं. हम कर लेंगे लाश का
इंतजाम.
प्यारी! अब कौन लीपेगा घर . कौन दिखायेगा दीवारों पर हांथों की कलाकारी
. कौन लायेगा महुआ के फूल . कौन इमली , कनेर को पानी देगा . कौन गायेगा नदी पर
सिर्फ मेरे लिए गीत. डरना मत वंहा . मै जल्दी ही आउंगा तुम्हारे पास. फिर हम मिलकर
बंशी बजायेंगे नदी के किनारे. मेरे लिए इंतजाम कर के रखना .
bahut marmik chitran kiya hai.
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