जादू
जब तुमने मेरी आँखों में झाँका
एक साथ हजारों दिए रौशन हो गए .
तुमने मेरी आत्मा तक पंहुचने का लम्बा
सफ़र तय कर लिया
और मै ; अब भी तुम्हारी पहचान के चिन्ह
तलाश रही हूँ.
कितनी सच्चाई तुमने थामा था मेरा हाँथ ;
कि तार तार झंकृत हो गया था मेरा.
कैसे कर लेते हो तुम ये जादू ?
उफ़, मै भी क्या पूछ रही हूँ!
तुम तो मोह से परे हो और रिश्तो से भी
.
जब कोई देह का बंधन न हो ,
कोई मर्यादा न हो
तो ये मिलन इतना शाश्वत , इतना सच्चा क्योँ
नहीं हो सकता ?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें