देखो बाढ़ आयी
उमड़ रहीं नदियाँ
बह रहे हैंबाँध ,
टूट रहे सपने
ढह रहे मकान।
राशन बह गया
बह गयी किताब
बापू कब तक थामें रहेंगे
उनमे नहीं ताब।
पानी अक्षर पी रहा
कुत्ता रोटी खाय
भूखी बिटिया देखकर
हाहाकार मचाय।
चारों तरफ प्रलय है
मच रहा है शोर
कौन कहाँ बैठेगा
कंही नहीं ठौर।
जूझती बस्तियां हैं
नींद में सरकार
कौन कंहा जाय अब
सबका बंटाधार।
बह रहे हैंबाँध ,
टूट रहे सपने
ढह रहे मकान।
राशन बह गया
बह गयी किताब
बापू कब तक थामें रहेंगे
उनमे नहीं ताब।
पानी अक्षर पी रहा
कुत्ता रोटी खाय
भूखी बिटिया देखकर
हाहाकार मचाय।
चारों तरफ प्रलय है
मच रहा है शोर
कौन कहाँ बैठेगा
कंही नहीं ठौर।
जूझती बस्तियां हैं
नींद में सरकार
कौन कंहा जाय अब
सबका बंटाधार।
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