Time never be old ( बूढ़ा नहीं होता समय )

बच्चे  हमेशा संजोते रहते है कुछ न कुछ
टूटी प्लास्टिक , कांच की बोतलें
कूड़े में बिखरे कीमती सामान ,
भीख के कटोरे और  कूड़े के बोरे में;
शाम को ले आते हैं बच्चे ;
माँ बाप के लिए रोटी ,
भाई बहन क लिए टॉफी :
और अपने लिए !
एक और आने वाला दिन।
हर आने वाले दिन में
वो छुपाकर रखते हैं ,
माँ के सपने , बाप की उम्मीद ,
देश का भविष्य और दुनिया की आस।
बच्चे नहीं थकते कभी
जानते है वे
कि कोई भी आने वाला दिन बूढ़ा नहीं होता।



टिप्पणियाँ

  1. वाह...
    खूबसूरती से उकेरा है
    उस परिवार की गरीबी को
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. यशोदा दी , प्रतिक्रिया देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद और सुझाव देने के लिये आभार. आपसे आगे भी इसी प्रकार मार्ग दर्शन की अपेक्षा रखती हूं.

      हटाएं
  2. गूगल फॉलोव्हर गैजेट भी लगाइए
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी ये रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 28 जुलाई 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आप का बहुत बहुत आभार. मै जरुर भाग लूंगी.

      हटाएं
    2. आज halchalwith5links.blogspot.in par कई रचनायें पढी. मेरी रचना को स्थान व मान देने के लिये बहुत आभार.

      हटाएं
  4. मार्मिक रचना ! सत्यता के पट खोलती भयावह परिस्थिति आभार ''एकलव्य''

    जवाब देंहटाएं
  5. हृदय छूती रचना अपर्णा जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सटीक सुन्दर लाजवाब प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  7. अच्छा लिखती हैं। ब्लॉग फौलोवर बटन लगायें ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी प्रतिक्रिया देने और सुझाव देने के लिए धन्यवाद . समझ में नहीं आ रहा बटन कैसे लगाऊं . layout me kis gadget par click karna hai . please help karenge.
      aabhar

      हटाएं
  8. बहुत मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मीना जी , बहुत बहुत शुक्रिया. आपसे आगे भी प्रतिक्रिया मिलते रहने की उम्मीद करती हूँ .

      हटाएं
  9. देखते-देखते उन्हीं बच्चों के लिए उनके बच्चे रोटी लाने लगते हैं ! समय कहाँ बूढ़ा होता है, हमहीं बुढ़ाने लगते हैं

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  10. सिलसिला चलता रहता है अनवरत...
    अपर्णा बहन लगे हाथ ब्लॉग पर जाकर प्रतिक्रिया कर आइए
    सादर...

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