हिंसक समय में

जब कविता में शब्दों की जगह भर जाये आग और बारूद ,
तो मत समझना दोस्त!
समय की शाख पर बैठी कोयल गायेगी मीठे गीत ,
माँ की लोरी से सो जायेगा बच्चा निर्बाध नीद,
और चाय के प्याले में नहीं होगी कोई विषैली खबर ,

साथियों!
समय का श्वेत पर्दा 
जब हो चूका हो लहूलुहान;
तो कौन कोयल गाने की हिम्मत करेगी ,
किस कलम से निकालेंगे खुशी के शब्द ,
कौन तितली मस्ती में फैलाएगी अपने रंगीन पंख ,
कैसे अनजान दोस्त बांधेंगे दोस्ती की अटूट गांठ ,

है कोई समय का संरक्षक ,
जो दे सके लोगों को 
एक मुट्ठी हिम्मत ,
एक प्याला शांति,


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