एक दहशत गर्द का आत्मकथ्य
कल जब तुम आओगे इस धरती पर मेरे बच्चे,
तुम्हारा पिता ख़त्म हो चुका होगा मानवबम
के शरीर में,
इंसानियत तोड़ चुकी होगी दम ,
लहुलुहान हो चूका होगा तुम्हारा आस पास
जिस अस्पताल में जन्म देने वाली है
तुम्हारी माँ;
उसे उड़ाने की शाजिश कर चूका है तुम्हारा
बाप ,
मै शर्मिंदा हूँ मेरे बच्चे !
तुम्हारा स्वागत प्यार से नहीं हिंसा से होने वाला है :
लेकिन तुम अगरबच जाना मेरे लाल !
प्यार की जड़ें फैलाना हिंसा की नहीं ,
इस धरती को इंसानों की जरुरत है
हैवानों की नहीं.
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