टुकड़ा टुकड़ा भूख
वो कुल्हाड़ी से वार करता जा रहा था. उसे न कुछ सुनाई पड़ रहा था , न दिखाई पड़ रहा था. जब कुल्हाड़ी उसके हाँथ से दूर जा गिरी वह धम से वंही जमीन पर गिर पड़ा। तब तक घर के आस पास भीड़ लग गई थी. लोग घर के अंदर घुसे तो देखा वह अचेत पड़ा है। उसकी पत्नी की छिन्न - भिन्न लाश पड़ी है। घर में चारों तरफ़ खून ही खून.
भीड़ में लोग क्या हुआ , क्या हुआ कर रहे थे। कोई बोला अरे अंतू ने अपनी पत्नी को कुल्हाड़ी से काट डाला। तब तक पुलिस आ गयी। भीड़ तितर - हो गई थी. . पुलिस ने घर अपने कब्जे में कर लिया था। लोग अब भी दूर दूर से देख रहे थे। पुलिस ने शव को पंचनामा के लिए भेज दिया था और अंतू को थाने ले गयी।
अंतू चुप था जैसे वो कभी बोला ही न हो। वह रात भर वैसे ही बैठा रहा । बिना हिले -डुले। सुबह पुलिस को जो उसने बताया वह क्या यकीन करने लायक था..
वो भूख से बेहाल था. घर में खाने के लिए कुछ भी नहीं था . पत्नी घर में नहीं थी. जब तक पत्नी घर लौटती उसने पूरा घर छान लिया. कुछ भी नहीं मिला जो उसकी भूख को शांत कर सकता.
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पिछले एक हफ्ते से उसे काम नहीं मिल रहा था. शहर में कर्फ्यू के हालत थे. अफवाहों ने शहर के लोगों को दहशत में दाल दिया था. हर व्यक्ति को शक की नजर से देखा जा रहा था। कंही बच्चा चोर तो कंही मोबाइल चोर।वो अपनी ईमानदारी का क्या सबूत देता. अच्छे कपडे थे नहीं. काला कमजोर शरीर , तन पर चार पांच साल पुराने पैबंद लगे कपडे , हिंदी भी ठीक से नहीं बोल पाता।
मजदूर चौक पर सन्नाटा छाया हुआ था. क्या पूरे शहर में काम ख़त्म हो गया था या उन जैसे लोगों को काम नहीं दिया जा रहा था।
घर में सब सामान खत्म हो गया था. पत्नी कुछ लाने के लिए बोलती तो वह घर से निकल जाता. न घर में रहेगा न पत्नी कुछ लाने के लिए बोलेगी। तीन दिन से अंतू घर नहीं जा रहा था. दारू की भट्ठी पर पड़ा रहता। भट्ठी वाले का कुछ कुछ काम कर देता. बदले में वह उसे थोड़ी सी दारु पिला देता. एक दिन भट्ठी वाले ने उससे कहा कि अंतू अपनी पत्नी को भी यंहा ले आ. भट्ठी पर बैठेगी तो आमदनी बढ़ जाएगी। तुझे महीना- महीना पगार दे दिया करूंगा और दारु फ्री ,चाहे जितनी पी.
अंतू कश्मकश में था। वो जनता था ये काम ठीक नहीं है , भट्ठी पर आने वाला हर आदमी उसे बुरी नज़र से देखेगा. हंसी मजाक करेगा। यह सब देखकर वह कैसे बर्दास्त करेगा. फिर उसकी पत्नी तैयार होगी तब न। उस दिन दोपहर में वह गया था पत्नी से बात करने. घर गया तो देखा वह सो रही है. चूल्हा देख कर समझ गया कि यह भी छुट्टी पर है। उसने पत्नी को उठाया। हाँथ मुँह धोकर दोनों ने एक एक लोटा पानी पिया। पत्नी ने खाने के लिए नहीं पूछा. घर में खाने के लिए कुछ होता तब तो पूछती। उसने पत्नी से भट्ठी पर बैठने के बारे में बात की। बिना एक शब्द बोले वह मान गयी। अंतू को आश्चर्य हुआ लेकिन उसे लगा शायद मजबूरी समझ कर कुछ नहीं बोल रही है. .. वह घर से निकलता उससे पहले ही पत्नि तसली लेकर घर से निकल गयी बोली नदी पर पानी लेने जा रही है. वह भी घर से निकल गया।
वह भूख से बेहाल था लेकिन बाहर किसी से कुछ मांग नहीं सकता था.
शाम को अंतू के पेट में जोर से दर्द उठा. वह घर भागा. सोचा पत्नी शायद जंगल से कुछ खाने वाला कुछ लाई हो.
जब घर पंहुचा पत्नी घर में नहीं थी. घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं था. वह घर में खोजबीन कर ही रहा था तभी उसकी पत्नी आ गयी। उसने पूछा कंहा गयी थी तो गुस्से में बोली भट्ठी वाले के पास खाने का इंतजाम करने. ये ले उसने मेरी इज्जत के बदले दस रुपये दिए है. जा ले आ चावल। आज रात हम दोनों भूखे नहीं सोयेंगे। तुम कल से जाने के लिए कह रहे थे तो मै आज ही चली गई. देख उसने मेरे शरीर का क्या हाल किया है और वह साड़ी खोल कर उसके सामने खड़ी हो गयी।
अंतू की आँखों के सामने अँधेरा छा गया. उसे कुछ नहीं दिख रहा था , न पत्नी , न भूख , न दर्द। गुस्से में वह जैसे विक्षिप्त हो गया था। उसे पास में पड़ी हुई कुल्हाड़ी दिखी। उसने कुल्हाड़ी उठाई और अपनी पत्नी को उसी से मारने लगा। पत्नी की चीखें उसे सुनाई नहीं पड़ रही थीं वह कुल्हाड़ी तब तक चलाता रहा जब तक वह उसके हाँथ से छूटकर दूर न जा गिरी. साथ में वह भी वंही गिर पड़ा. सब कुछ ख़त्म हो गया था।
आज वह पुलिस की लॉकअप में था. यंहा उसे भूखा नहीं रहना था। अब वह जनता नहीं सरकारी मेहमान था.
अगले दिन अखबार में खबर छपी थी. एक शराबी ने नशे में अपनी पत्नी को काट डाला।
समाप्त।
पिछले एक हफ्ते से उसे काम नहीं मिल रहा था. शहर में कर्फ्यू के हालत थे. अफवाहों ने शहर के लोगों को दहशत में दाल दिया था. हर व्यक्ति को शक की नजर से देखा जा रहा था। कंही बच्चा चोर तो कंही मोबाइल चोर।वो अपनी ईमानदारी का क्या सबूत देता. अच्छे कपडे थे नहीं. काला कमजोर शरीर , तन पर चार पांच साल पुराने पैबंद लगे कपडे , हिंदी भी ठीक से नहीं बोल पाता।
मजदूर चौक पर सन्नाटा छाया हुआ था. क्या पूरे शहर में काम ख़त्म हो गया था या उन जैसे लोगों को काम नहीं दिया जा रहा था।
घर में सब सामान खत्म हो गया था. पत्नी कुछ लाने के लिए बोलती तो वह घर से निकल जाता. न घर में रहेगा न पत्नी कुछ लाने के लिए बोलेगी। तीन दिन से अंतू घर नहीं जा रहा था. दारू की भट्ठी पर पड़ा रहता। भट्ठी वाले का कुछ कुछ काम कर देता. बदले में वह उसे थोड़ी सी दारु पिला देता. एक दिन भट्ठी वाले ने उससे कहा कि अंतू अपनी पत्नी को भी यंहा ले आ. भट्ठी पर बैठेगी तो आमदनी बढ़ जाएगी। तुझे महीना- महीना पगार दे दिया करूंगा और दारु फ्री ,चाहे जितनी पी.
अंतू कश्मकश में था। वो जनता था ये काम ठीक नहीं है , भट्ठी पर आने वाला हर आदमी उसे बुरी नज़र से देखेगा. हंसी मजाक करेगा। यह सब देखकर वह कैसे बर्दास्त करेगा. फिर उसकी पत्नी तैयार होगी तब न। उस दिन दोपहर में वह गया था पत्नी से बात करने. घर गया तो देखा वह सो रही है. चूल्हा देख कर समझ गया कि यह भी छुट्टी पर है। उसने पत्नी को उठाया। हाँथ मुँह धोकर दोनों ने एक एक लोटा पानी पिया। पत्नी ने खाने के लिए नहीं पूछा. घर में खाने के लिए कुछ होता तब तो पूछती। उसने पत्नी से भट्ठी पर बैठने के बारे में बात की। बिना एक शब्द बोले वह मान गयी। अंतू को आश्चर्य हुआ लेकिन उसे लगा शायद मजबूरी समझ कर कुछ नहीं बोल रही है. .. वह घर से निकलता उससे पहले ही पत्नि तसली लेकर घर से निकल गयी बोली नदी पर पानी लेने जा रही है. वह भी घर से निकल गया।
वह भूख से बेहाल था लेकिन बाहर किसी से कुछ मांग नहीं सकता था.
शाम को अंतू के पेट में जोर से दर्द उठा. वह घर भागा. सोचा पत्नी शायद जंगल से कुछ खाने वाला कुछ लाई हो.
जब घर पंहुचा पत्नी घर में नहीं थी. घर में खाने के लिए भी कुछ नहीं था. वह घर में खोजबीन कर ही रहा था तभी उसकी पत्नी आ गयी। उसने पूछा कंहा गयी थी तो गुस्से में बोली भट्ठी वाले के पास खाने का इंतजाम करने. ये ले उसने मेरी इज्जत के बदले दस रुपये दिए है. जा ले आ चावल। आज रात हम दोनों भूखे नहीं सोयेंगे। तुम कल से जाने के लिए कह रहे थे तो मै आज ही चली गई. देख उसने मेरे शरीर का क्या हाल किया है और वह साड़ी खोल कर उसके सामने खड़ी हो गयी।
अंतू की आँखों के सामने अँधेरा छा गया. उसे कुछ नहीं दिख रहा था , न पत्नी , न भूख , न दर्द। गुस्से में वह जैसे विक्षिप्त हो गया था। उसे पास में पड़ी हुई कुल्हाड़ी दिखी। उसने कुल्हाड़ी उठाई और अपनी पत्नी को उसी से मारने लगा। पत्नी की चीखें उसे सुनाई नहीं पड़ रही थीं वह कुल्हाड़ी तब तक चलाता रहा जब तक वह उसके हाँथ से छूटकर दूर न जा गिरी. साथ में वह भी वंही गिर पड़ा. सब कुछ ख़त्म हो गया था।
आज वह पुलिस की लॉकअप में था. यंहा उसे भूखा नहीं रहना था। अब वह जनता नहीं सरकारी मेहमान था.
अगले दिन अखबार में खबर छपी थी. एक शराबी ने नशे में अपनी पत्नी को काट डाला।
समाप्त।
विसंगतियों से दो दो हाथ करते गरीब के मर्मान्तक मनोविज्ञान का कारुणिक चित्रण!
जवाब देंहटाएंअपर्णा जी आपकी रचना दिल मे गहरी छाप छोड़ने में सफल रही ,दर्द भरी सत्यता को छूती रचना ।
जवाब देंहटाएंऋतु जी , उत्साह वर्धन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.आशा करती हूं आप आगे भी मार्गदर्शक प्रतिक्रियायें देती रहेंगी.
हटाएंमजबूरी
जवाब देंहटाएंसारा कुछ करवा देती है
इसी कहानी को दो बार पढ़कर
फिर से लिखिए..
शायद कुछ नया पढ़ने को मिले
सादर
सुझाव देने के लिये शुक्रिया.किसी भी रचना पर जब आलोचनत्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलतीसमझ में नहीं आता कि कंहा पर सुधार की गुंजाइश है.मेरा अनुरोध स्वीकार करने के लिये धन्यवाद.
हटाएंभूख इंसान से कुछ भी करवा सकती है। लेकिन एक पति जो अपनी पत्नी को किसी के पास भेजने को तैयार है उसे भी जब पता चलता है कि उसकी पत्नी...तो वो ये सहन नही कर सकता। बहुत सुंदर।
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