एडमिशन फीस और माँ की हंसुली

क्या हुआ आ पापा इतना क्योँ गुस्सा हो रहे हैं ? नहीं नहीं बेटा गुस्सा नहीं हो रहा हूँ . बस मन इन स्कूल वालों की हरकतों पर तड़प तड़प के रह जाता हूँ . ये लोग हमारी मजबूरी का नाजायज फ़ायदा उठाते है . सातवीं कक्षा में पढने वाल रोहन समझ नहीं पा रहा पापा क्योँ इतना परेशान हैं. स्कूल तो अच्छा है . टीचर भी अच्छी हैं . हाँ क्लास में बच्चे ज्यादा है . टीचर सब पर ध्यान नहीं दे पाती.मुझसे तो तीन – चार दिन से टीचर ने कोई बात नही की. कोई सवाल भी नहीं पूछा. शायद मुझे देख नहीं पाई होगी . मै  पीछे छुप जाता हूँ न . क्या यह बात पापा को बताऊँ ? नहीं नहीं, पापा और गुस्सा होने लगेंगे. अभी मुझे चुपचाप ही रहना चाहिए. घर जाकर पापा मम्मी को सारी बात बताएँगे ही तब मै चुपके से सुन लूँगा.
घर जा कर रोहन के पापा चिल्लाने लगे. “ क्या करूँ अब , रोहन के स्कूल में प्रिंसिपल बोल रही थी की एडमिशन फीस और मासिक फीस दोनों बढ़ाई जा रही है . बीस हजार रुपये एडमिशन फीस जमा करनी होगी और हर महीने दो हजार मासिक फीस  देनी होगी. समझ में नहीं आ आ रहा क्या करूं” . रोहन की  मम्मी बोली आप पहले शांत हो जाइये फिर आराम से बात करते हैं. सब लोग खाना खाते है और रोहन सोने चला जाता है . रोहन के पापा भी दूकान चले जाते है .  घर में रोहन की मम्मी परेशान है कि इतनी ज्यादा फीस का इंतजाम कैसे होगा. दुकान की आमदनी भी कम हो गयी है जब से आसपास नई दुकाने खुल गयी है . रोहन के पापा भी दूकान पर आराम से नहीं बैठ पाए . आज जल्दी ही लौट आये.
रोहन के पापा बोलते है कि गाँव वाला घर बेच देते हैं और माँ को यंहा ले आते है , वैसे भी वो गांव में अकेली रहती हैं. यंहा शहर में आना नहीं चाहती. जब घर ही नहीं रहेगा तो कंहा जायेंगी. मेरी भी चिंता खंत्म हो जायेगी की माँ अकेली रहती हैं. रोहन की मम्मी को माँ को यंहा ले आने वाली बात पसंद नहीं आयी . वो बोली कि इस दो कमरे के घर में इतने लोग कैसे रहेंगे . फिर यंहा हम किराये के मकान में रहते है अपना घर भी नहीं है . कभी बुरे दिन आये और हमें लौट के जाना हुआ तो हम कहा जायेंगे . गाँव में घर है तो कम से कम लौट के जाने का ठिकाना तो है . रोहन के पापा बोले , जब बुरे दिन आयेंगे तब देखा जाएगा , अभी तो इस फीस वाली मुसीबत से किसी तरह निपटना है. मै कल ही गांव जाकर माँ से बात करता हूँ. मुझे पता है वो  पोते की फीस की बात सुनकर मना नहीं कर पाएंगी. घर बेचने से कुछ ज्यादा पैसा मिला तो मै भी दूकान थोड़ी बड़ी कर लूँगा .
अगले दिन सुबह की ट्रेन पकड़ कर वो गांव चल देते है .गांव में माँ बेटे को देखकर फूली नही समाती. बेटा इस बार बहुत दिन बाद आये. बेटे के लिए जल्दी जल्दी उसकी पसंद का खाना बनाती हैं . आज उसे लगता है कितना सुकून है इस घर में. कितना अपनेपन का एहसास.दीवारें भी जैसे अपनी बाजुओं समेट लेती हैं. ये हवा जैसे सिर्फ उसी के लिए चल रही हो.  और वो इस घर को बेचने आया है . उसके पापा की आख़िरी निशानी है ये घर. वो मात्र आठ साल का था जब पापा गुजर गए थे. तब से माँ ही इस घर की  देखभाल करती आयी है . माँ के लिए ये घर ही उनका सब कुछ है . वो सोचता है नहीं वो माँ से घर बेचने की  बात नहीं  करेगा.
वो सोने की कोशिश करता है. लेकिन उसे बहुत देर तक नीद नहीं आती.उसकी माँ सोचती है की जब से ये आया है बहुत बेचैन है. जरुर कोई बात है जो इसे परेशान कर रही है . माँ उसके पास जाकर बैठती है और उसके सर पर हाँथ फेरती हुए कहती है ,“ बता न बेटा क्या बात करने आया है जो तू मुझसे बोल नहीं पा रहा है” .
रोहनके पापा की आँखे भर आती  है . माँ मुझे पैसो की जरुरत है , रोहन की फीस जमा करनी है . वंहा साल भर कमाने के बाद भी इतनी बचत नहीं कर पाता कि हर साल एडमिशन फीस जमा कर सकूं. हर महीने के फीस जमा करना ही मुश्किल होता है . माँ ये घर बेच देता हूँ . तुम भी मेरे साथ चलो. यंहा गाँव में कब तक अकेले रहोगी. माँ कुछ देर सोचती है फिर जा कर अपना संदूक उठा कर लाती है और उसमें से एक सोने की हंसुली ( गले में पहना जाने वाला एक आभूषण) निकाल कर बेटे के हाँथ पर रख देती है .ले बेटा इसे बेचकर मेरे पोते का एडमिशन करा देना . और अगले साल फिर आ जाना मै कुछ इंतजाम करके रखूँगी. लेकिन इस घर को बेचने की बात कभी मन में भी मत लाना . ये घर ही है जिसने तुम्हारे पिता जी के जाने के  बाद मेरे हर सुख दुःख का साथी बन कर रहा है .मुझे इसके कोने कोने से उनकी खुशबू अब भी आती है . तुम्हारे बचपन की खिलखिलाहटें इस घर में अब भी बिखरी हुई है . मै जब तक नहीं उठ जाते ये घर किसी और का नहीं हो सकता . तुम्हारा भी नहीं .
रोहन के पापा सुबह सुबह शहर के लिए निकल पड़ते है . रास्ते में बार बार जेब में रखी हुई मां की हंसुली पर उनका हाँथ चला जाता है . अब मन शांत है . बेटे की एडमिशन फीस का इंतजाम माँ ने कर दिया था.


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