देखता है तो देखने दो
ए सुनयना ! लग रहा है बाहर जोर की बारिश हो रही है। हाँ भैया ,टीना पर से बूंदो की आवाज बहुत तेज आ रही है। चलो सुनयना बहुत दिन हो गए , बारिश में नहाये हुए. ठंडी ठंढी बूंदों को अपने चेहरे पर महसूस किये हुए. क्या भैया, इतनी रात में बारिश में हम नहाने जायेंगे. लोग देंखेंगे तो क्या कहेंगे. अरे यही सुन सुन के तो हम बूढ़े हो गए। जब हम किसी को नहीं देखते तो कोई हमको क्योँ देखेगा। हमारी आँखों के अंधियारे ने कभी सूरज देखा न चाँद। न पेड़ पौधे. हम ने तो एक दूसरे को भी नहीं देखा। कैसे लगते है हम हमें ही नहीं पता। फिर कोई और हमें क्यों देखेगा ?
न भैया मै अभी रात में आपको बाहर नहीं जाने दूंगी। कोई सांप , बिच्छू , कीड़े मकोड़े ने काट लिया तो.... अरे काटेगा तो काटेगा , मै आज बारिश में जरूर नहाऊंगा।
साठ साल के होने जा रहे है आप। इस उम्र में कोई जिद करता है वो भी रात के दो बजे ! न सुनयना आज तो मै नहाऊंगा ही और तुमको भी बारिश में ले जाऊंगा। मुझे मालूम है तुम भी मन ही मन भीगना चाहती हो और मुझे मना कर रही हो।
साठ साल का चैनू अपनी चौवन साल की बहन सुनयना का हाँथ पकड़ कर घर के बाहर सड़क पर आ जाता है।दोनों बूढा बूढ़ी बारिश में खूब नहाते है। एक दूसरे का हाँथ पकड़ कर जमीन पर भरे हुए पानी में छपाक छई करते है। जैसे वे अपना बचपन एक बार फिर जी रहे हों। आज बारिश की बूंदों के उनके अँधेरे जीवन में खुशियों की रौशनी भर दी.
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