उपभोक्तावाद का सच

देश दुनिया में पांव पसारता हुआ उपभोक्तावाद ,
अपनी आँखों से देखती हूँ
क्या करूं ? रोक नहीं सकती
कह नहीं सकती कि दूर रहो इससे ,
यह अजगर की तरह जकड़ लेगा हमें ,
तब तक नहीं छोड़ेगा;
जब तक निकल न जायेंगे प्राण ,
'अयं निजः परोवेति' की बात तो दूर हो गयी ...

अब सिर्फ दूसरों की चीजों से मज़े करो ,
ठूंस लो अपनी जेबें,
बचा खुचा तहस नहस कर दो ,
कभी न निकालो इकन्नी अपनी जेब से ,
दूसरों का सामान सरकारी माल की तरह उड़ाओ,
पता चल जाए कि इसके पास है कुछ ,
तो परिक्रमा करते रहो आसपास.
दूसरों की बुराइयों के कसीदे काढते रहो ,
अपनों के मन में भरते रहो ज़हर ;
की फूट न जाए उनके मन में किसी और के लिए प्यार का अंकुर ...
यही है उपभोक्तावाद का सच .

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