हादसा!
हादसा!
इसमे कौन सी नई बात है
ये तो होते ही रहते हैं.
फ़िर जितने मरते हैं उससे कंही अधिक पैदा हो जाते हैं.
क्या कहा? लोग बह रहे हैं, मवेशी मर रहे हैं, घर -खलिहान डूब रहे है;
तो इसमे हम क्या कर सकते हैं?
प्राकृतिक आपदाओं पर किसका जोर चलता है.
अरे भाई ज़िंदगी -मौत तो ऊपर वाले के हांथ में है,
इसमे सरकार का क्या दोष?
सरकार विकास के लिये काम कर रही है
न मानो तो योजनाओं के पुलिन्दे खोल कर देख लो;
RTI तुम्हारे पास है ही.
अब चिल्ला-चिल्ला कर सिर न खाओ
कलम घिस-घिस कर नेतागिरी मत करो,
शांति से जियो, देश-विदेश घूमो
अपने चौखटे चमकाओ.
अरे मियां!
चुपचाप तमाशा देखो,
सात अरब जनसंख्या वाले देश में
दो-चार लाख मर भी जाते हैं तो क्या फर्क पड़ता है.
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