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देश के बंटबारे के दर्द को आपने संवेदना की कूची से शब्दचित्र में बदल दिया है। बेहद मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 10 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 755 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।
रवीन्द्र जी , आपका बहुत बहुत आभार .
हटाएंउत्साहवर्धन के लिये बहुत बहुत धन्यवाद. मै चर्चा में जरुर भाग लूंगी. रचना को लिंक करने के लिये आभार.
हटाएंसुंदर भाव ...दोस्ती में सरहदें कैसी ?
जवाब देंहटाएंमोनिका जी , ब्लोग पर आपका स्वागत है . प्रतिक्रिया देने कि लिये शुक्रिया. आगे भी आपकी प्रतिक्रियाओ का इंतज़ार रहेगा . सादर
हटाएंसत्य कहा राजनीतिज्ञों के फैलाये आग में हम आज भी जल रहे हैं। बहुत ही मार्मिक रचना ! आभार ,"एकलव्य"
जवाब देंहटाएंशुक्रिया एक्लव्य जी . आप सभी की सराहना और अच्छा लिखने के लिये प्रेरित करती है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर...
जवाब देंहटाएंहम अपनी दीवारों में कैद हो गये
और हमारी दोस्ती हवाओं में घुल गयी
मर्मस्पर्शी रचना....
धन्यवाद सुधा जी , ब्लॉग पर आपका स्वागत है .
हटाएंदोस्ती को सरहदें रोक नहीं सकती । सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....