हम प्रेम पगी बाते छेड़ें
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कुछ हल्की- फुल्की बातें हों
कुछ नेह भरी बरसातें हों
कुछ बीते जीते लम्हे हों
कुछ गहरी- उथली बातें हों.
कभी हम रूठा -रूठी खेलें
कभी हम थोड़ीे मनुहार करें
कभी आपा -धापी भूल चलें
कभी एक -दूजे का हाँथ गहें।
कभी एक कदम मै और बढ़ूँ
कभी तुम थोड़ा अभिमान तजो
कभी एक -दूजे के मानस में
हम प्रेम भरी बौछार करें।
तुम जीते हो मन में मेरे
मै स्पंदन तेरे तन का
तुम मेरे भावों की धरती
मै जीवन भर आकाश तेरा।
आ जी लें अपने सपनों को
हम एक दूजे के कन्धों पर
तुम मेरी सीढ़ी बनो कभी
मै तेरी क्षमता बन जाऊं।
जब रात कोई काली आये
हम हाथ थाम आगे आएं
सब स्याह -कठिन घड़ियों में फिर
हम प्रेम पगी बाते छेड़ें।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया लोकेश जी.
हटाएंवाह्ह्ह....सुंदर भावपरिपूर्ण रचना अपर्णा जी।आपसी तालमेल से ही जीवन की सुंदरता है और जीवन जीने में सहज है।
जवाब देंहटाएंसराहना के लिये धन्यवाद श्वेता जी.
हटाएंBahut sundar abhivyakti.
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