आवाज़ कौन उठाएगा?


मेरे शब्दों  का रंग लाल है 
रक्तिम लाल!
जैसे झूठी मुठभेड़ में मरे 
 निर्दोष आदमी का रक्त....
जैसे रेड लाइट एरिया में पनाह ली हुई....... 
औरत के सिन्दूर का रंग.
 जैसे टी बी के मरीज का खून .....
जो उलट देता है अपनी गरीबी....
हर खांसी के साथ.
ये रक्तिम शब्द भी इतने बेज़ान हैं......
बस पड़े रहते हैं .........
काल-कोठारी के भीतर!
आवाज़ कौन उठाएगा??????????????????????????
(image credit google)

टिप्पणियाँ

  1. आवाज कौन उठायेगा ,ये रक्तिम शब्द भी इतने बेजान हैं
    बस पड़े रहते हैं काल कोठरी के भीतर ।
    आवाज को ऊंचा करना ही होगा ,बहुत अच्छा लिखा है ।

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  2. ऋतु जी ब्लोग पर आने और कविता की प्रशंशा करने के लिये सादर आभार.आप सब का मार्गदर्शन ही मेरा सम्बल है.सादर

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