सेल्फी में चमकता देश
picture - google |
मेरे चहरे पर ये जो उदासी देख रहे हो
मेरी ही पीड़ा नहीं है इसमे
मेरी आँखों में थोड़े से आंसू सीरिया के उन बच्चों के भी है;
जिन्होंने पैदा होने के बाद सिर्फ बारूद का धुंआ देखा है,
मेरी उफ़्फ़ में उन लाखों औरतों का दर्द है
जो अनचाहे ही बिस्तरों पर पटक दी जाती हैं,
मेरी सूजी हुई आँखें कहानी कहती हैं उस बेनींद बुढ़ापे की
जो दरवाजे पर टकटकी लगाए अंतिम साँसे गिन रहा है.
तुम कहते हो तुम्हे मेरे चेहरे पर प्यार नज़र नहीं आता;
हाँ, उसे मैंने तितलियों के परों में छुपा दिया है;
न जाने कब प्यार की कालाबाज़ारी में जेल हो जाए हमें।
अरे संभल जाओ संवेदना को सरे आम जीने वालों
सरकार हमारे शब्दों बैन लगाने वाली है।
ओ मेंहदी रचे हांथो वाली विधवाओं!
ज़रा अपने फौजी पतियों की जेबें तो टटोलो
कहीं कोई प्रेम पत्र तो नहीं छोड़ गया तुम्हारे लिए/????
सरकार से कोई उम्मीद मत रखना!
वो सेल्फिस्तान में झूठी मुस्काने बेचने में व्यस्त है.
देश भूखे बचपन , लाचार जवानी , बेउम्मीद बुढ़ापे से कराह रहा है
और दुनिया ;
सेल्फियों में चमकती हमारी झूठी मुस्कानों की कीमत लगा रही
है।
उफनते भावों में गूँथी सुंदर रचना अपर्णा जी।
जवाब देंहटाएंShukriya sweta jee.
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंव्यवस्था पर तीखा कटाक्ष है वहीँ आपके मानवतावादी वैश्विक चिंतन को नमन।
दर्द का बाँध जैसे फूट पड़ा हो और हम सब इस रचना के भावों की गहराई में बहे जा रहे हों।
उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
लिखते रहिये।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
शुक्रिया रवीन्द्र जी.आप सब की प्रेरनात्मक प्रतिकृयायें और अधिक लिखने के लिये प्रेरित करती हैं.
जवाब देंहटाएं