तुम मेरा मधुमास बन कर लौट आओ!
लौट कर आओ ज़रा सा मुस्कुराओ
चाँद- तारों को हंथेली में छुपाओ
और कह दो रात ये सूनी न होगी
उन नयन में दीप्ति मेरी गुनगुनाओ
तुम मेरा मधुमास बन कर लौट आओ.
मै अकेला ही रुका था बाँध पर जब
तुम नदी सी बह चली थी भोर के संग
साथ मेरे थम गया था द्वेष सारा
तुम हवा सी उड़ चली थी रीत पर सब.
था सघन नव स्नेह तेरा मेरे ऊपर
और मेरा प्रेम कुछ उथला बुना था
मै रुका था रीत थामे इस धरा की
तुम स्वरा सी मुक्त होकर बह चली थीं.
हूँ अकेला याद तेरी रौशनी है
तुम नहीं हो छाँव ये तुम सी घनी है
मैं थका सा गीत अब किसको सुनाऊँ
मेरे अधरों पर उमड़ कुछ गुनगुनाओ
तुम मेरा मधुमास बन कर लौट आओ.
(Picture credit to google)
बहुत सुंदर भाव,विरह की वेदना व्यक्त करते हृदय के उद्गार।बहुत अच्छी कविता आपकी अपर्णा जी।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्वेता जी,आप का सादर आभार.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 08 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिग्विजय जी , मेरी रचना को मान देने के लिये आपका सादर आभार.मै अवश्य प्रतिभागिता करुंगी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
जवाब देंहटाएंवियोग में व्याकुल नायक के मनोभावों को प्रवाहमयी शैली में अभिव्यक्ति मिली है।
बधाई अपर्णा जी नितांत मौलिक सृजन के लिए।
भाषा-सौंदर्य भाव -गाम्भीर्य की ओढ़नी में लिपटा हुआ।
सुन्दर विरह मनुहार गीत!!! बधाई और शुभकामना!!!
जवाब देंहटाएंइस कविता ने मेरा मन मोह लिया। इतनी सुंदर कल्पना मेरी आशा के अनुरूप सोच ली हुई, बस मै शब्दविहीन हो चुका हूँ। आदरणीय अपर्ना बाजपेयी जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंइतनी प्रेरक प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये आपका शुक्रिया अग्रज.आशा करती हूं आप हमेशा और लिखने के लिये उत्साह वर्धन करते रहेंगे. सादर
हटाएंबहुत बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंThanku Ritu jee
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंbhav hi bhav.
जवाब देंहटाएंहूँ अकेला याद तेरी रौशनी है
जवाब देंहटाएंतुम नहीं हो छाँव ये तुम सी घनी है
मैं थका सा गीत अब किसको सुनाऊँ
मेरे अधरों पर उमड़ कुछ गुनगुनाओ
तुम मेरा मधुमास बन कर लौट आओ.
सुंदर रचना जो अपने को लौट आने पर मजबूर कर रहा है।अगर लौट कर नहीं आ सकता तो इन शब्दों को महसूस कर के पश्चताप जरूर करेगा।