गौरी लंकेश की मौत पर (On the death of Gauri Lankesh)
तुमने एक सच को मारना
चाहा
वो तुम्हे मरकर भी अंगूठा
दिखा रहा है!
कलम है, रुक नहीं सकती
शब्द मौन नहीं हो सकते
कितनी ही कर लो कोशिश
दबा लो गला
काट दो नाड़ी
विक्षिप्त घोषित कर दो
ओढा दो कफ़न
दफ़न नहीं कर सकते सच्चाई.
खुश भले हो लो दो-चार को
मार कर
कॉलर खड़ी कर लो अपने आप
खुद की
वाह वाही बटोर लो कायरों
की
क्या आइना दिखा पाओगे खुद
को?
अपना ही चेहरा वीभत्स
नहीं दिखेगा तुम्हे!
जिस दिन खड़े होगे अपने
सामने
अपना आप बहुत बौना लगेगा,
अपनी हरकतों से पैसे भले
ही बटोर लो
अपनी ही नज़रों में नंगे हो
जाओगे.
(picture credit to google)
समसामयिक घटना पर आक्रोश व्यक्त करती आपकी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अपर्णा जी।
Hello Mam Do you want Publish your book
जवाब देंहटाएंज्वलन्त समस्या
जवाब देंहटाएंअसहनीय
सादर
यशोदा दी,blog पर आने के लिये शुक्रिया.
हटाएंसटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका.आभार
हटाएंगौरी लंकेश जी को हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंहिंसक दमनकारी सोच पर करारा प्रहार करती आपकी रचना उन्हें आइना दिखाने में सक्षम है जो इस निर्मम हत्या पर जश्न मना रहे हैं।
रवीन्द्र जी आपकी प्रतिक्रिया हमेशा कुछ नया रचने के लिये प्रेरित करती है. आप से प्रकार मार्गदर्शन की उम्मीद करती हूं.सादर आभार.
हटाएंसत्यता के यथार्थ दर्शन कराती रचना
जवाब देंहटाएंकिसी की आवाज को दबा पाना असंभव है अभिव्यक्ति पर ताले शर्मनाक है । आपकी कविता पढ़कर मैं करुणा से भर उठा ।
जवाब देंहटाएंकिसी की आवाज को दबा पाना असंभव है अभिव्यक्ति पर ताले शर्मनाक है । आपकी कविता पढ़कर मैं करुणा से भर उठा ।
जवाब देंहटाएंगौरी लंकेश हों या कालबर्गी या फिर अतीत के सुकरात .. हर बार जहर के ररूप में मौत को गले सच्चाई को ही लगानी पड़ती है। इस आडम्बर और विडम्बना वाली भीड़ में भीड़ की पुरातनपंथी सोच से कुछ भी अलग सोचना या करना जघन्य अपराध है , इस "हुआँ-हुआँ" वाली भीड़ की नज़रों में .. शायद ...
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