लघुकथा - अफ़वाह के हाँथ
लघुकथा - अफ़वाह के हाँथ
क्या खाला, बस इतनी सी सब्जी, थोड़ी और
दो न! रेहाना मिन्नत करती हुई बोली. "न और नहीं, दोपहर को भी खाना है, तुम्हारे खालू अभी दूकान से आकर खायेंगे.आज
कुछ और सब्जी भी नहीं है,गैस भी ख़त्म होने वाली है.सिलेंडर दो दिन बाद ही मिलेगा.
कुछ और नहीं बना सकती", खाला उसे समझाते हुए बोली. अच्छा खाला, मै खालू के साथ फिर खालूंगी,
रेहाना उठ कर अपनी किताबें संभालने लगी.
खाला जूठे बर्तन उठाकर रख रही थी तभी बाहर
कुछ शोर सुनाई पड़ा. रेहाना और खाला दोनो दौड़ कर बाहर आयी. तब तक कुछ लोग घर के
अन्दर आ गए और उनका सामान उठा कर फेकने लगे.रेहाना रोने लगी. खाला कुछ समझती तब तक
उनके घर में उन लोगों ने आग लगा थी.
आसपास पास पूरा गाँव उमड़ कर आ गया था .घर
जल कर राख हो चुका था. खाला का रो-रो कर बुरा हाल था.वसीम मियाँ की लाश घर के बाहर
रखी थी. उन्हें लोगों ने भरे चौराहे पर पीट-पीट कर मार दिया था. पुलिस आकर भी
उन्हें नहीं बचा पायी थी. उम्नादी भीड़ ने अपनी मनमाने की थी. कल किसी ने व्हाट्सएपर
अफवाह फैलाई थी कि वसीम मियाँ अपनी दुकान पर गाय का मांस बेचते हैं.
रामेश्वर जोर जोर से चिल्ला रहा था, वसीम
मियाँ ऐसा कभी नहीं कर सकते. वो तो रोज गाय को रोटी खिलाने के लिए मेरे घर आते थे.
ये लघु कथा नहीं है
जवाब देंहटाएंसत्य घटना है....
चार या पाँच शहरों मे इस प्रकार के दंगे हुए हैं
सादर
बहुत अच्छी कहानी। बहुत बढ़िया विषय। कम शब्दों में बड़ी कह देना-गम्भीर प्रश्न छोड़ देना रचनाकार की कुशलता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर, मन को छूती कहानी...
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