बड़ी बेपरवाह हो!
वो आख़िरी चुम्बन तुम्हारा
और झटके से पलट जाना
भूलता क्यों नहीं?
सरे बाज़ार उठ कर चली आती हो,
पकडती हो हाँथ और खींच लेती हो मुझे मेरे समय से.
अतीत हो जानता हूँ,
छू नहीं सकता तुम्हें अब
सोचना भी पाप है ....
पर तुम!
बड़ी बेपरवाह हो,
खींच ले जाती हो अपने सहन में.
सर्दी की सुबह,
मेरे ही कप में सुड़कती हो चाय,
अपने गर्म हांथों में छुपाकर
मेरी बर्फ सी हन्थेलियाँ
गायब हो जाती हो मेरे वजूद में.
भागता हूँ जब भी हार कर मै,
जीवन की प्यास से सराबोर कर देती हो.
मेरे आईने पर चिपकी हो इस तरह;
कि मुझमे भी तुम दिखती हो.
खिलखिलाती हो मेरे डर पर
पसार बांहे थाम लेती हो मुझे मोहपाश में.
होना चाहता हूँ जितना भी दूर;
उतना ही करीब आ जाती हो.....
डराती हो ,धमकाती हो,
मेरे दिन पर छा जाती हो,
सामने हो मेरे, बस एक कदम दूर
हर सांस मुझ में एकसार हो जाती हो.
(Image credit google)
अनूठे प्रेम को प्रतिबिंबित करती, नायाब कविता!
जवाब देंहटाएंप्रेम भी है और प्रेम में जीवन की प्यास भी है।
बहुत खूबसूरत।
शुक्रिया दोस्त!
हटाएंVery nice poetry beautifully expressed love
जवाब देंहटाएंthanks Neetu ji
हटाएंVery nice and romantic poem.... Lovely writer Anita ji
जवाब देंहटाएंशकुंतला जी, सादर धन्यवाद
हटाएंप्रेम एक खूबसूरत अहसास है,जो हर हाल में दिल के करीब है चाहे उसे पा लो या फिर खो दो वो कभी भुलाएं नहीं भुलता,और अर्पणा आपने कितने रूमानी शब्दों का प्रयोग किया है,बफ सी हथेलियां,सुड़कती चाय, आखिरी चुंबन...इनकी वजह से कविता में सुंदरता आ गई.. बहुत ही प्रभावशाली रचना आपने लिखी... बधाई।
जवाब देंहटाएंमन करता है मै भी कुछ जो
जवाब देंहटाएंबीत गये पल याद करू
माँ की गोदी वाले प्यारे
उस चुम्बन को याद करू
नही आश्की मेरी कोई मै
माँ को केवल याद करू
गोदी वाले प्यारे चुम्बन को
ही मै तो याद करू
अप्रतिम काव्य, अद्वितीय!!
जवाब देंहटाएंसुंदर विरह श्रृंगार।
बहुत बहुत सुंदर रचना।
तुम नही हो... नही मानता
तुम हो
आंखों मे
छूवन मे
एहसास मे
धडकन मे
रूह मे
श्वास मे
मूझ मे हो तुम
बस मै कंहा
बस तुम ही तुम।
शुभ रात्री।
प्रिय अपर्णा --- आपकी हर रचना में अलग मिलता है| प्रेम की सार्थक या निरर्थक ????????????? तृष्णा को उकेरती रचना अप्राप्य के प्रति अप्रितम अनुराग का अप्रितम काव्य है !!!!! आँखों के दिवास्वप्न और उनमे किसी की छवि क्या कहने उस मर्मान्तक स्थिति के सब कुछ लिख डाला आपने| अतीतानुरागी अकिंचन मन और कर भी क्या सकता है |
जवाब देंहटाएंतुलसी के रत्ना के प्रति भाव प्रकट करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रेम के यही एहसास हैं जो यादें में रहते हैं ... और दिल को गुद्गादे है तन्हाई के पलों में ... लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंदो आत्माओं के अनुराग का घनीभूत संघट्ट!
जवाब देंहटाएंकैसे भूलूँ.....
जवाब देंहटाएंवो आख़िरी चुम्बन तुम्हारा
और झटके से पलट जाना .....
भूलता क्यों नहीं?
निःशब्द हूँ कविता के अन्दर निहित दर्द भरे भाव से।