मर्द हूँ, अभिशप्त हूँ
मर्द हूँ,
अभिशप्त हूँ,
जीवन के
दुखों से
बेहद संतप्त हूँ।
बोल नहीं सकता
कह नहीं सकता
सबके सामने
मै रो नहीं सकता.
भरी भीड़ में रेंगता है हाँथ कोई
मेरी पीठ पर ;और मैं
कुछ नहीं बोलता,
कह नहीं सकता कुछ;
भले ही बॉस की पत्नी
चिकोटी काट ले मेरे गालों पर सरेआम.
मै चुप रहता हूँ;जब मेरी मां
ताना देती है मुझे
अपने ही बच्चे का डायपर बदलने पर....
रात भर बच्चे के साथ जगती पत्नी
कोसती है मुझे
और मै कुछ नहीं करता;
आज तक नहीं सीख पाया
नन्हे शिशु को गोद में लेना,
कान में गूंजती है माँ की हिदायत
गिरा मत देना बच्चे को;
और मै!
सहम कर छुप जाता हूँ
चादर के भीतर;
भले ही तड़पता रहूँ पत्नी और बच्चे के दर्द पर.
सोशल मीडिया के पन्ने
भरे हैं औरत के दर्द से; और मै
चुपचाप कोने में खड़ा हूँ.
दिन भर खटता हूँ रोजी कमाने को
फिर भी; सामाजिक भाषा में
मै बेवड़ा हूँ.
मालिक हूँ,
देवता हूँ,
पिता हूँ ,
बेटा हूँ,
हर रिश्ते में बार-बार पिसा हूँ.
मर्द हूँ,
अभिशप्त हूँ
जीवन के दुखों से
बेहद सन्तप्त हूँ।
(Image credit google)
मर्द के जीवन उनकी मजबूरी को बख़ूबी लिखा है ...अपने दर्द को किसी से नहि कह पाता ... पीता है दर्द चुपके चुपके ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीय नासवा जी, सादर
हटाएंबेजुबानों को जुबान देती सुंदर और समीचीन रचना। बधाई और आभार!!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरणीय!
हटाएंअनोखी अभिव्यक्ति अपर्णा जी,कुछ मुट्ठीभर पुरूष शायद ऐसे होते है। आपने बहुत अच्छी शब्द रचना की। आपकी रचनाओं के विषय अलहदा होते है। अनछुए।
जवाब देंहटाएंश्वेता जी , आभार ब्लोग पर आने के लिये, इंतजार था आपका. प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया, सादर
हटाएंbhot badhiya.....
जवाब देंहटाएंThank you dear!
हटाएंWahhhhhh। बहुत ही ख़ूब। क्या बात है। अपर्णा जी पहली बार किसी महिला रचनाकार ने मर्द के दर्द पर इतना सकारात्मक लिखा। बहुत शानदार
जवाब देंहटाएंगर्व आपने दे दिया, आया बड़ा करार
मर्द प्रजाति पर किया, लिखकर के उपकार।
अमित जी कोई उपकार नहीं किया. सिर्फ सच को कह दिया.
हटाएंआपका सादर आभार
सादर आभार दी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात है...
सही कहा श्वेता जी ने मुट्ठी भर पुरुष शायद ऐसे होते होंगे....
मुट्ठी भर ही सही....सोचना चाहिए न उनके विषय में भी...
बहुत लाजवाब
ये है आज का फैशन...
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीया अपर्णा जी आज मैंने आपकी रचना पढ़ी एकदम अनोखी। वाह ! बहुत खूब लिखा है जवाब नहीं आपका
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंआपकी संवेदनशील क़लम ऐसे अनछुए बिषय उठाती है जिन्हें ग़ैर ज़रूरी समझकर दफ़ना दिया गया हो। मर्द को भी दर्द होता है आपका यह हस्तक्षेप अच्छा लगा। बदलते परिवेश में मर्द की स्थिति को आपने बख़ूबी बयान किया है आदरणीया अपर्णा जी। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
bhaut sudar chitran
जवाब देंहटाएंऔरत होकर एक पुरूष की वेदना को प्रकट करना बहुत ही मुश्किल होता है परंतु अपर्णा जी आपने बहुत ही सुंदर शब्दों में एक पुरूष की मन की व्यथा को अभिव्यक्त किया है
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