सरकारी दस्तावेज़ों में थर्ड जेंडर हूँ!


न औरत हूँ न मर्द हूँ 
अपने जन्मदाता का अनवरत दर्द हूँ. 
सुन्दर नहीं हूँ , असुंदर भी नहीं 
हुस्न और इश्क का सिकंदर भी नहीं।
मखौल हूँ समाज का, हंसी का लिबास हूँ,
गलत ही सही ईश्वर का हिसाब हूँ.
जान मुझमें भी है, संवेदना भी 
जन्म भले न दूं, पालक लाज़वाब हूँ.
हंसते हो , खिलखिलाते हो,मजाक बनाते हो,
तुम्हारी नीचता का क़रारा जवाब हूँ.
तुम्हारे जन्म पर तालियाँ बजाता हूँ,
अपने होने की कीमत मांग जाता हूँ,
मर्द का जिगर हूँ , औरत की ममता हूँ 
पके हुए ज़ख्म सा हर पल रिसता हूँ
देहरी और दालान के बीच में अटका हूँ 
पाच उँगलियों के साथ छठी उंगली सा लटका हूँ.
चंद सिक्के फेंक कर पीछा छुड़ाते हो,
क्यों नहीं मेरा दर्द थोड़ा सा बाँट जाते हो.
मुझमें भी साँसे हैं, मेरे भी सपने हैं,
पराये ही सही कुछ मेरे भी अपने हैं,
प्यार की झप्पी पर मेरा भी हक़ है,
इज्जत की रोटी मुझे भी पसंद है. 
नागरिक किताबों में बोया हुआ अक्षर हूँ,
पूरे लिखे पत्र का जरूरी हस्ताक्षर हूँ.
नर और नारायण के बीच का बवंडर हूँ 
सरकारी दस्तावेज़ों में थर्ड जेंडर हूँ.





टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 09-11-2017 को चर्च मंच पर चर्चा - 2783 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति "पाँच लिंकों का आनंद" ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में गुरूवार 09-11-2017 को प्रातः 4:00 बजे प्रकाशनार्थ 846 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर। सधन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सूचना (संशोधन) -

      नमस्ते, आपकी रचना के "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) में प्रकाशन की सूचना
      9 -11 -2017 ( अंक 846 ) दी गयी थी।
      खेद है कि रचना अब रविवार 12-11 -2017 को 849 वें अंक में प्रातः 4 बजे प्रकाशित होगी। चर्चा के लिए आप सादर आमंत्रित हैं।




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  3. सवेदनशील रचना ...
    बोना लिसी कसूर के कसूरवार बना दिए जाते हैं ऐसे लोग ... जबकि वो भी साधारण इंसान की तरह सोच रखते हैं ...

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  4. देहरी और दालान के बीच में अटका हूँ
    पाच उँगलियों के साथ छठी उंगली सा लटका हूँ.

    बहुत अद्भुत। आपकी लेखनी सदा चकित करती है वाह।।

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  5. सुन्दर अभिव्यक्ति। बधाई और शुभकामनायें।

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  6. एक अबूझ कसक भरी रचना| बधाई |

    जवाब देंहटाएं

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