कब्ज़ा (लघु कथा )
रफ़ीक मियाँ कोर्ट के बाहर बुरी तरह से चीख रहे थे और अपने कपड़े नोच
रहे थे.भीड़ आस पास तमाशा देखरही थी. कोइ बोला,”सत्तर बरस का बूढ़ा रोड पर नंगा होकर
क्या कर लेगा...... फिर भी चिल्लाने दीजिये शायद हमारे देश की न्याय व्यवस्था को
शर्म आ जाए!
पूरी ज़िंदगी गुजार दी रफीक मियाँ ने सरकारी कार्यालयों के चक्कर
लगाते लेकिन टस से मस न हुआ था उनकी जमीन पर अवैध कब्जा करने वाला संग्राम सिंह. रफीक
के बाबा ने कितनी हसरत से शहर में जमीन खरीदी थी कि उनके बाल -बच्चों को किराए के
मकान में होने वाली किच-किच से न जूझना पड़े. जमीन खरीदने में ही बूँद-बूँद जमा की
गयी बचत खर्च हो गयी थी. बेचारे जमीन पर बाउंड्री भी न पाए थे और अल्लाह को प्यारे
हो गए थे. रफीक के अब्बाजान सऊदी चले गए थे जब वो अपनी अम्मी के गर्भ में ही था. वंहा
वे किसी फैक्ट्री में जाने क्या काम करते थे कि जब भी फोन पर बात करते तो कहते कि
घर वापस आने के लिए पैसे जमा कर रहे हैं. पर न पैसे जमा हो पाए और न वो घर आये. एक
दिन पड़ोस के बब्बन चचा ने खबर दी कि उनकी रोड
एक्सीडेंट में मौत हो गयी है. अम्मी ने उन्हें वहीं सुपुर्दे खाक करने की इजाज़त दे
दी. अब उम्मीद भी ख़त्म हो गयी थी अब्बा के लौट आने की. रफीक मियाँ उस समय सत्रह
बरस के थे.
अब रफीक ने भी एक गैराज में काम करना शुरू कर दिया था. इतने दिनों से
अम्मी दूसरों के घर काम करके किसी तरह से उन्हें पाल रहीं थी और एक सपना देख रही
थीं कि एक दिन उनका अपना घर होगा और रफीक वंही अपना गैराज खोलेगा .
लगभग दस साल पहले संग्राम
सिंह ने उसकी अम्मी से उस जमीन पर एक छोटी सी दूकान खोलने की इजाज़त ली थी और वादा
किया था कि वे जब कहेंगी वो जमीन खाली कर देगा.अब रफीक जब भी संग्राम सिंह से कहता
कि उसकी जमीन खाली कर दे तो वो कहता ही तुम पैसे जमा करो जब तुम्हे घर बनाना होगा
तब मै जमीन खाली कर दूंगा. एक ही गाँव से होने के कारण रफीक उसकी बात विश्वास कर
लेता.
धीरे-धीरे संग्राम सिंह के तेवर बदलने लगे थे. एक दिन रफीक उसके पास
गया तो संग्राम सिंह ने उसे बहुत धमकाया और उसे वंहा से भगा दिया. रफीक समझ गया था
कि अब जमीन उसके हाँथ से गयी.
उसने संग्राम सिंह के खिलाफ मुकदमा कर दिया था ये सोच कर कि उसके पास
जमीन के असली कागज़ है और इस बिना पर कोर्ट से उसे न्याय जरूर मलेगा. पिछले तीस सालों से वो कोर्ट के
चक्कर लगा रहा था. तारीख पर तारीख पड़ती थी, हर तारीख में पैसे खर्च होते थे फिर भी
वो कोइ तारीख नहीं छोड़ता था. बीमार हो,बरसात हो कुछ भी हो रफीक मियाँ कोर्ट में
हाजिर रहते. नकली कागजो के आधार पर संग्राम सिंह जमीन का असली मालिक बना बैठा था
और असली मालिक न्याय से कोसों दूर था.
एक रात संग्राम सिंह के आदमी रफीक मियां को बुलाने आये और बोले कि संग्राम
सिंह उनके साथ सुलह करना चाहता है. रफ़ीक मियाँ संग्राम सिंह से मिलने चले गये ,
सोचा शायद संग्राम सिंह उसकी जमीन वापस कर दे.
संग्राम सिंह ने वंहा उनकी खूब आवभगत की और चलते समय उनसे केस वापस
लेने के लिए कहा. संग्राम सिंह ने धीरे से उनके कान में धमकी दी कि अगर वो केस
वापस नहीं लेंगे तो उन्हें संदिग्ध आतंकवादी के नाम पर जेल के अन्दर करा देगा. फिर
कौन उनका केस लडेगा. उसकी पंहुच बहुत ऊपर तक है.
रफीक मियां वंहा से चुपचाप अपने घर चले आये और पूरी रात सोचते रहे.
क्या करें...जिस देश में दाढ़ी होना ही संदेह के घेरे में हो वंहा उस जैसे लोग क्या
उम्मीद पालें.... लेकिन उनहोंने ठान लिया कि अब किसी भी हालत में केस वापस नहीं लेंगे
और कसम खाई कि अब वो उसी जमीन पर कब्र में
सोएंगे जिसके लिए वो बरसों से न्याय के
मंदिर की परिक्रमा कर रहे हैं .
आज उनके केस का फैसला आ गया था. जमीन संग्राम सिंह की ही मानी गयी थी
और रफीक मियाँ को न्याय के नाम पर अंगूठा दिखा दिया गया था. रफीक मियाँ चीख रहे
थे, अपने कपड़े फाड़ रहे थे और भीड़ तमाशा देख रही थी. एक ईमानदार आदमी आज भरी सड़क पर
पागल करार दे दिया गया था.
(picture credit google)
ईमानदार आदमी ही पागल होता है।
जवाब देंहटाएंसादर आभार सुशील जी.
हटाएंबहुत मार्मिक और सच्चाई कि बिलकुल पास है ये लघुकथा | आपके संवेदनशील लेखन की प्रशंसक हूँ | नववर्ष में आपकी लेखनी रचनात्मकता के शिखर छुए | हार्दिक शुभकामनाये और बधाई |
हटाएंआदरणीय रेनू दी.आपका प्रेम और आशीष इसी प्रकार बना रहे.और नव वर्ष आपको भी हसीन खुशियों से नवाजे.
हटाएंइसी आशा और विश्वास के साथ आने वाले वर्ष के लिये हार्दिक शुभकामनायें.
सादर
सच्चाई को बखूबी कलमबद्ध किया है। बस इतनी सी ही न्याय व्यवस्था परिलक्षित होती है हमारे समाज में। आपकी लेखनी हर स्तर पर पैनी है और हर विषय में पारंगत।
जवाब देंहटाएंईश्वर आपके सृजन कौशल में उत्तरोत्तर वृद्धि करे यही शुभकामना है।
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसच्ची कहानी
आज भी ऐसा ही होता है
सादर
आदरणीय दी, आपकी प्रतिक्रिया मिलती है तो लगता है जरुर कुछ अच्छा ही लिखा होगा.
हटाएंआपका सादर आभार नव वर्ष के लिये मंगल कामनायें.
ईमानदारी का सबक़ ऐसा हाई होता है ... इंसान पागल हाई दिखता है सभी को ... कड़वी सचाई है आज की ...
जवाब देंहटाएंइंसाफ आज भी लोगों से कोसों दूर है. पैसों की ताकत के आगे कोई नहीं टिक पाता. एकदम कटु सत्य.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 01 अगस्त 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
चिंतनपूर्ण लघुकथा ।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर टिप्पणियाँ स्पैम में जा रही हैं क्या ? यहां सूचना वाली टिप्पणी भी नहीं दिख रही ।।
जवाब देंहटाएंईमानदारी आज के दौर में पागलपन ही है शायद...।
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील भावों को शानदार कहानी में पिरोया है आपने अपर्णा।
बहुत अच्छी लगी।
सस्नेह।
एक ईमानदार आदमी आज भरी सड़क पर पागल करार दे दिया गया था.….उफ् कितनी मार्मिक रचना…न जाने कितने रफ़ीक यूँ ही छल कपट ते हाथों पागल करार कर दिए जाते हैं 😔
जवाब देंहटाएंसदियों से सड़कों पर घूमता सच लिखा आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
ओह! प्रिय अपर्णा,बहुत ही मार्मिक रचना आज फिर मन को बींध आँखों को नम कर गई।विश्वाघात और कुव्यवस्था के शिकार ना जाने कितने रफ़ीक आखिर में कपडे नोच कर अपनी बेबसी जाहिर कर खामोश हो जाते हैं।और कथित कुटिल संग्राम जैसे लोग अपना दांव खेलकर जीतकर खुश हो जाते हैं।
जवाब देंहटाएंकटु सत्य पर आधारित बहुत ही मार्मिक कहानी ...।
जवाब देंहटाएंसच में न्याय में भी खरीद फरोख्त है एक ईमानदार इंसान जाये भी तो कहां जाये
करे भी तो क्या करे ।
दिल को छू गयी आपकी ये कहानी।