समय उनका है!


वे हमारा सूरज अपनी जेबों में ठूंस लेते हैं 
हम रात की तारीक घाटियों में ज़िंदगी तलाशते हैं,
वे चमन की सारी खुशबुओं को अपने हम्माम में बंद कर लेते हैं 
और हम.... 
सड़ांध में मुस्काने खोजते हैं,
एक दिन जब भर जाएगा उनका पेट..... 
वे उल्टियां करेंगे शानो-शौकत की 
और हम उनकी उतरन
अपनी तिजोरियों में बंद कर लेंगे,
बाकी नहीं हैं दिन 
और......... रातें भी ख़त्म!
सुई की टिक-टिक उनके इशारों पर नाचती है,
हम...... अपने समय  का इंतज़ार कर रहे हैं!!!!!!
प्रक्षेपण न जाने कब हो जाए,
बंद हो जाए रौशनी
दर्शक दीर्घा में पसर जाए सन्नाटा
आओ एक आवाज़ तलाशें
मरघट में शायद चीत्कार के अर्थ बदल जाएँ।

(Image credit google)

टिप्पणियाँ

  1. कहाँ आने को है वो दिन जब जीवन सच हो,
    न हमारा हो न उनका बस थोड़ा सा सरस् हो।

    बहुत सुंदर भाव व्यक्त किये हैं कविता के माध्यम से

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  2. सखी आज ब्लॉग पर तुम्हारी उपस्थिति नियमित समयांतराल से कुछ अधिक समय पर है। हम सब प्रतीक्षा में थे।
    सस्नेह,

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत उमदा रचना ...
    सिल को चीरती हुयी ...

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 फरवरी 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. वाह!!!!
    बहुत लाजवाब.....
    सुई की टिक-टिक उनके इशारों पर नाचती है,
    हम...... अपने समय का इंतज़ार कर रहे हैं!!!!!!
    प्रक्षेपण न जाने कब हो जाए,

    जवाब देंहटाएं

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