होना- न होना



उम्र भर तेरे इश्क की बाती जलाए 
जोहता हूँ बाट
आहट की,
रुनझुन का राग कब से गायब है 
पर्दे के उस पार तुम्हारी उँगलियों का स्पर्श ताज़ा है अब भी 
तुम लापता हो अपनी तस्वीर से 
ये जो माला टंगीहै न 
कहती है तुम्हारी अनुपस्थिति की कथा 
पर कमबख्त कान.......  सुनते ही नहीं
बस एक बार आकर कह दो 
कि तुम नहीं हो आस-पास 
मान लूंगा मै.
बस इतनी सी गुज़ारिश है 
झटक दो मेरा हाँथ अपनी स्मृतियों से...... 
समेट लो अपनी ध्वनि तरंगे इस कोलाहल से 
जो मेरे अन्दर बेचैन है
तुम्हारा होना ही जिंदा है 
न होना;
जाने कब का मर गया!

(image credit google) 

टिप्पणियाँ

  1. बेहतरीन लेखन
    तुम्हारा होना ही जिंदा है
    न होना;
    जाने कब का मर गया!

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  2. बहुत बहुत आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. उफ!!
    बेहतरीन।
    वैसे तो इन संमदर सी गहरी रचना का जो सीधा उर को बींध रही है, की कोई भी प्रतिक्रिया नही कर पा रही बस यूं ही..

    जो जिंदा है ताउम्र इस दिल की पनाहों मे
    क्या मिटा पायेगा नामुराद मौत का साया निगाहों मे।

    सुप्रभात शुभ दिवस।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय कुसुम दी, ब्लॉग पर आपका आना ही कविता का मान बढ़ा देता है. आपका एक शब्द की संतुष्ट कर देता है रचनाकार को कि लगता है जो लिखना चाहा शायद वह लिख पायी हूँ. आपका ह्रदय से आभार. सादर

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  4. खैल की मंडी

    मंच सजा
    बोलियां लगी
    ये बिका
    वो बिका
    उसे इसनें खरीदा
    इसे उसने खरीदा
    कला बिक गई
    खैल बिक गया

    बोली लगी
    अमीरों ने लगाई
    कौन बिका
    कौन रह गया
    गरीबों नें तालियां बजाई

    किसी को ढैला ना मिला
    कही पैसों की बरसात हो गई
    बिकना भी अब यहां
    सम्मान की बात हो गई

    क्या मेरी टीम
    क्या तेरी टीम
    सब पैसों का खैल है
    निचोड़ रहे है जो
    बस गरीबों का ही तेल है

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  5. वाह्ह....बहुत सुंदर रचना। किसी का न होकर भी हमेशा महसूस होना बहुत सुंदर भाव बुने आपने अपर्णा जी..👌👌
    लाज़वाब रचना।

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    उत्तर
    1. सराहना के लिए बहुत बहुत आभार श्वेता जी । सादर

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