प्रेम खुद से!
प्रेम के बेतहाशा उफ़ान पर
उड़ जाती है परवाह!
प्रेम खुद से........ दे जाता है उपहार
खुद को पा लेने का
प्रेम की राह आसान नहीं
बंदिशें हैं,जिम्मेदारियां हैं
नजरें हैं, सवाल हैं, संदेह हैं
प्रेम ही ज़वाब है...
प्रेम सच्चा है तो आत्मविश्वास है
प्रेम उल्लास का राग है
प्रेम ही अलाप है
प्रेम खुद की रूह का एकालाप है
प्रेम खोल देता है दरवाजे बुलंदियों के
प्रेम की पदचाप;
मधुर है पर है कठिन
अजीब है पर सच्ची है
प्रेम की राह पर........ चलते चलें
इस भीड़ में ज़रा खुद को पाते चलें।
(Image credit google)
सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुंदरता से परिभाषित किया आपने प्रेम को
जवाब देंहटाएंकाव्यात्मक प्रवाह के साथ।
सच प्रेम खुद की रुह का एकालाप हैं।
लाजवाब अप्रतिम।
शुभ रात्री।
आदरणीय कुसुम दी
हटाएंसादर आभार
प्रेम पर मनन करती सुन्दर रचना. जीवन सूनाहै प्रेम के बिना. अनमोल मूल्य है जीवन के लिये प्रेम जिसे अपने-अपने नज़रिये से हम परिभाषित करते हैं लेकिन सम्पूर्णता की तलाश अब तक ज़ारी है.......
जवाब देंहटाएंबधाई एवं शुभकामनायें.
आदरणीय रवीन्द्र जी
हटाएंबहुत बहुत आभार
सादर
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
आदरणीय कविता जी
हटाएंबहुत बहुत आभार
सादर
http://bolsakheere.blogspot.in/2018/01/blog-post_7.html
जवाब देंहटाएंPrem ka khubsurat varnan. Prem mein insaan akela hokar bhi khud ko talash raha hai.
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