प्रेम खुद से!


प्रेम के बेतहाशा उफ़ान पर 
उड़ जाती है परवाह!
प्रेम खुद से........  दे जाता है उपहार 
खुद को पा लेने का
प्रेम की राह आसान नहीं
बंदिशें हैं,जिम्मेदारियां हैं
नजरें हैं, सवाल हैं, संदेह हैं
प्रेम ही ज़वाब है... 
प्रेम सच्चा है तो आत्मविश्वास है 
प्रेम उल्लास का राग है
प्रेम ही अलाप है 
प्रेम खुद की रूह का एकालाप है
प्रेम खोल देता है दरवाजे बुलंदियों के 
प्रेम की पदचाप;
मधुर है पर है कठिन 
अजीब है पर सच्ची है
प्रेम की राह पर........ चलते चलें 
इस भीड़ में ज़रा खुद को पाते चलें। 

(Image credit google)

टिप्पणियाँ

  1. सुंदरता से परिभाषित किया आपने प्रेम को
    काव्यात्मक प्रवाह के साथ।
    सच प्रेम खुद की रुह का एकालाप हैं।
    लाजवाब अप्रतिम।
    शुभ रात्री।

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रेम पर मनन करती सुन्दर रचना. जीवन सूनाहै प्रेम के बिना. अनमोल मूल्य है जीवन के लिये प्रेम जिसे अपने-अपने नज़रिये से हम परिभाषित करते हैं लेकिन सम्पूर्णता की तलाश अब तक ज़ारी है.......
    बधाई एवं शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
  4. Prem ka khubsurat varnan. Prem mein insaan akela hokar bhi khud ko talash raha hai.

    जवाब देंहटाएं

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