चाय वाली सुबह! #Tea
तुम्हारी आवाज़ में उगता है मेरा सूरज
चाय बनाते हुए जब गुनगुनाती हो भोर का गीत
रात के कांटो से फूलों के गलीचों पर उतर आता हूं,
उस फ़ानूसी कप में जब थमाती हो मुझे गर्मागर्म चाय..
मै.... जैसे लौट आता हूं भटकती राहों से,
रात का सपना हो या दिवास्वप्न
मशीनों के साथ जूझते वक्त में
तुम्हारी चाय!
मुझे ज़िंदगी सौंपती है,
जुबां पर इसका स्वाद और तुम्हारी नज़रों की मिठास
पोछ डालती है तल्ख एहसासों को,
हर रोज...... एक और दिन मिलता है जीने के लिये,
सुबह की ये चाय और तुम्हारा साथ....
ज़िंदगी बस इत्ती सी तो है.
(image credit google)
मिठास तो बस तुम्हारे होने में होती है
जवाब देंहटाएंबेजान कप में उमड़ रहा कत्थई बूंदों का सैलाब
मुझमे भाव जगाता है
जब तुम सुरमई आंखों को मेरी ओर टिकाती हो
उस चाय के साथ
जिसमें तुम मिठास लाती हो।
चाय और प्रेम का क्या खूब वर्णन किया है।
वाह्ह्ह....क्या कहने बहुत मीठी कविता बनायी आपंने अपर्णा जी👌👌👌
जवाब देंहटाएंअति सुंदर...😊
कविता की मिठास आप तक पंहुची इसके लिये बहुत बहुत आभार
हटाएंक्या बात है! सुन्दर अभिव्यक्ति! बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंप्रेम, प्रेमी चाय और सुबह का मंज़र ... सच में और क्या चाहिए जीवन में ...
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