मुझे लिखा जाना बाकी है अभी!
मैं एक ख़त हूँ;
मुझे लिखा जाना बाकी है अभी,
गुलाबी सफहों के ज़िस्म में ढलकर
सुर्ख स्याही के मोतियों से सजकर
मेरा पैग़ाम बन इठलाना बाकी है अभी,
हयात चार दिनी और बची है मुझमें
उसके हांथों में लरजता हुआ टुकड़ा हूँ मै,
जाने कब दिल का हाल सुनाएगी मुझे
अपने अजीज़ का हाल बताएगी मुझे
जानता हूँ जब भी लिखेगी मुझको वो
शर्म से खुद में ही बार-बार सिमट जायेगी
हर एक हर्फ़ के बाद खुद से पूछेगी
कोरे कागज़ को एहसास बताना गुस्ताख़ी तो नहीं?
न मुझमे जान है,न साँसे हैं कि कह सकूं उससे
मुझ पर एतबार करे और दिले ग़ुबार लिखे,
रखूंगा राज़ हर शै से बचाकर तब तक
उसकी स्याही के रंग नहीं बुझते मुझमें
मै एक ख़त हूँ इंसां नहीं के मुकरूंगा
बस एक बार वो मुझ पर ज़रा ऐतबार करे।।
(image credit google)
वाह्ह...शब्दों और भाव़ो के बेजोड़.तालमेल.से सजी बहुत सुंदर रचना अपर्णा जी...👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आदरणीय श्वेता जी,
हटाएंरंगपर्व की हार्दिक शुभ कामनाएं
सादर
न मुझमे जान है,न साँसे हैं कि कह सकूं उससे
जवाब देंहटाएंमुझ पर एतबार करे और दिले ग़ुबार लिखे,
रखूंगा राज़ हर शै से बचाकर तब तक
उसकी स्याही के रंग नहीं बुझते मुझमें
मै एक खत हूँ इंसां नहीं के मुकरूंगा
बस एक बार वो मुझ पर ज़रा ऐतबार करे।।
बेहतरीन कल्पना, बेहतरीन कलम संयोजन व शब्द चयन। मंत्रमुग्ध कर दिया आपने।
आदरणीय बड़े भैया , बहुत बहुत आभार । आपकी प्रतिक्रियाएं इसी प्रकार मिलती रहें। इसी उम्मीद के साथ होलोकोत्सव की शुभ कामनाएं।
हटाएंसादर
अभिव्यक्ति में गूढ़ता और रहस्य का समावेश उसे बार-बार पढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
जवाब देंहटाएंएक शानदार नज़्म जो पढ़ते-पढ़ते भावों की गहराइयों में हमें डुबो देती है।
जीवन के प्रति नज़रिया दर्द और बेचैनी के साथ उभरा है।
होली की शुभकामनाएं।
बार बार आपकी प्रतिक्रिया पढ़ रही हूँ, क्या सचमुच अच्छा लिखा है.....
हटाएंबहुत बहुत आभार
बेहद शानदार रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा आप ने
बधाई इस खूबसूरत रचना के लिये
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
आपकी लिखी रचना आज के "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 04 मार्च 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई साहब , सादर आभार
हटाएंख़त की लिखी इबारतें जब उतरेंगी तो इतिहास बना देंगी ...
जवाब देंहटाएंगहरा चिंतन ...
न मुझमे जान है,न साँसे हैं कि कह सकूं उससे
जवाब देंहटाएंमुझ पर एतबार करे और दिले ग़ुबार लिखे,
रखूंगा राज़ हर शै से बचाकर तब तक
उसकी स्याही के रंग नहीं बुझते मुझमें
बहुत सुन्दर कल्पना । नायिका की हिचकिचाहट और बेजान पत्र के आश्वासन के बीच बिछा बेहतरीन शब्द संकलन ।रचना मर्म को स्पर्श कर गई ।शुभकामनाएँ ।
आदरणीय पल्लवी जी, ब्लॉग पर आपका स्वागत है।इतनी सुन्दर प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत बहुत आभार ।
हटाएंसादर
जानता हूँ जब भी लिखेगी मुझको वो
जवाब देंहटाएंशर्म से खुद में ही बार-बार सिमट जायेगी
हर एक हर्फ़ के बाद खुद से पूछेगी
कोरे कागज़ को एहसास बताना गुस्ताख़ी तो नहीं?
बहुत ही सुन्दर.... लाजवाब...
मनोभावों को बड़ी खूबसूरती से सजाया और पिरोया है आपने....
वाह!!!
आदरणीय सुधा जी, आप हमेशा मेरा उत्साह वर्धन करती हैं। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए बहुत मायने रखती है। सादर आभार
हटाएंप्रिय अपर्णा, ना जाने क्यों आपके ब्लॉग पर टिप्पणी हो नहीं पा रही। पुनः प्रयत्न किया अब। आपकी यह रचना बार बार पढ़ी मैंने ! आपकी कल्पनाशीलता और मौलिक सोच का परिचय देती यह रचना मन को छू गई ! लिखते रहें। बहुत सारे स्नेहसहित -
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत।
जवाब देंहटाएंसादगी भी है, प्रेम भी है।
कुछ समय के साथ बीत गया
कुछ पूर्णता पाने को मन रीत गया।
यही तो है प्रेम कितने भी कागज़ भर डालो अधूरा ही रह जाये।