कल वाले लेमनचूस!
थोड़ा पागलपन भेजवादो
और ज़रा से लेमनचूस,
जीवन इतना खट्टा हो गया
दिल के इन गड्ढों से पूछ।
भोर का सूरज जगा नहीं है
चंदा निदिया को तरसे,
फूल गंध से बिछड़ गए हैं
बादल पूछें क्यों बरसें।
कोई आकार कह दो इनसे
दो पल का ही जीवन है
कह लो सुन लो एकदूजे से,
सारी उम्र न जाए बीत।
बीत गयी जो बात गयी
कुछ मुस्कानें सजवा दो,
पतझड़ जैसी शामों में
नूतन कलियां खिलवा दो।
बचपन वाली सीखें कहती
कहा सूनी पर मिट्टी डाल,
प्यार की झप्पी ले दे करके
सबके मन का जाने हाल।
बाहर का तो बहुत हो गया
अंतर चेहरा दिखला दो,
हर मन में इक दर्पण है
उस को उजला करवा लो।
वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना.... सुंदर
जवाब देंहटाएंबचपन की खुशबू बिखेरती रचना।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत।
https://mayankkvita.blogspot.in/2018/03/blog-post_9.html
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति......बहुत बहुत बधाई......
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... मन का दर्पण उजला होगा तो सब साफ़ और उजला ही देखेगा ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ...
बहुत सुंदर !
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