तेरी सुरमयी याद में गुलाबी हम
प्रेम के पैरहन में
खूबसूरत लड़ियाँ पड़ीं है
हमारे स्पर्श की,
नैनों ने कहा कुछ....
कि अफ़सानों ने चलना शुरू किया,
रात की उतरन ने गुलाबी सूरज थमाया
हरी चूड़ियों ने बोये कुछ कचनार
रजनी गंधा की कलियां चहकीं
घुल गयीं साँसों के संग
मैं.. बेतरतीब सी ....
आँचल संभाले दौड़ती हूँ ;
वक्त को गोद में उठाने
और तुम......
हवाओं का पीछा करते हो.
भीना भीना है सब कुछ,
उम्मीदों के बाग़ बहार की प्रतीक्षा में हैं
कपाटों की झिरी से
झांकती है मनुहार
सुरमयी आँखों ने
रुपहले ख़ाब बुने हैं ... कि
तुम्हारी कश्ती इस बार
मेरी ही जमीन में लगेगी
और हम
नदियों से सागर होने की यात्रा करेंगे...
बहुत सुंदर रचना कच्ची कचनार सी, गूंचा जैसे महक कर बिखर गया हवाओं के संग।
जवाब देंहटाएंआदरणीय कुसुम दी,
हटाएंआपकी सराहना सिर आँखों पर
इसी प्रकार उत्साह वर्धन वाली प्रतिक्रियाओं की उम्मीद में
सादर
अपर्णा जी बेहद सुंदर एहसास में भीगी प्यारी सी रचना....वाह्ह्ह👌👌👌
जवाब देंहटाएंआदरणीय श्वेता जी,
हटाएंहार्दिक आभार इस प्रशंसा के लिए
सादर
तुम्हारी कश्ती इस बार
जवाब देंहटाएंमेरी ही जमीन में लगेगी
और हम
नदियों से सागर होने की यात्रा करेंगे...----------- अनुरागी मन की बहुत ही प्यारी और सार्थक प्रत्याशा !!!!!!!!!!! सुंदर र्र्चना प्रिय अपर्णा | सस्नेह बधाई |
आदरणीय रेनू दी
जवाब देंहटाएंआपकी नेहमय बधाई ने दिल छू लिया।
आपकी स्नेहकांक्षी
सादर
वाह्ह्ह्ह्
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना