धार्मिक तन्हाई का दंश
धर्म का लाउडस्पीकर
जब उड़ेलता है उन्माद का गंदा नशा
हाँथ पैर हो जाते हैं अंधे,
नौजवान खून उबाल मारता है,
मासूम हाँथ रंग जाते हैं अपनों के खून से,
ज़ालिम दिमाग़ कोनों में मुस्कुराते हैं,
राजनीति की रोटियां सिंकती हैं
बेगुनाहों की चिता पर,
कानून के हांथ आये नादान लोग
जेल की तन्हाई में काटते हैं जवानी,
पैदा होती है अपराधियों की एक और पौध,
कुछ और शातिर दिमाग
सीखते हैं मक्कारी,
चल पड़ते हैं उसी राह पर
कि दूर कर दो बच्चे को बच्चे से,
फ़िर कभी धर्म के नाम पर खुशियां न मन सकें.
(Image credit google)
बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय
हटाएंसादर
यथार्थ दंश है ये तन्हाई का।
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.3.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2924 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
आभार आदरणीय
हटाएंसादर
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
शुक्रवार 30 मार्च 2018 को प्रकाशनार्थ 987 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी
जवाब देंहटाएंक्षमा कीजियेगा ,आपकी यह प्रस्तुति आगामी सोमवारीय विशेषांक के लिए सुरक्षित है। इसका प्रकाशन 2 अप्रैल 2018 को होगा।
हटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंधर्म-मज़हब के तवे पर सियासत की रोटियां सेकी जाती हैं. इस धंधे में इंसानियत को गिरवी रख कर हैवानियत ख़रीदी जाती है फिर उसे बेवकूफ़ों को मुनाफ़े के साथ बेचा जाता है.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
शुक्रिया सुधा जी
हटाएंसादर
कड़वा सच ।
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंसादर
दंगों के सच को बयां करती सूंदर रचना, साथ में सादर आग्रह है कि आप मुझे g + पर फॉलो करती ही हैं, ब्लॉग को भी फॉलो/अनुसरण करें।
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