वे गायब हैं!


एक सच यह है 
कि...... बलात्कृत स्त्री साँसे नहीं लेती, 
हवाओं में चेहरा नहीं उठाती,
नज़रें नहीं मिलाती खुद से 
समझती है खुद को मृत 
जबकि;
बलात्कार सिर्फ स्त्री का नहीं होता..... 
बलात्कार होता है सामाजिक मूल्यों का,
परवरिश की नींव खोखली हो जाती है,
हर पुरुष के चेहरे पर उग आते हैं
प्रश्नचिन्हों के कैक्टस!!!! 
झुकी हुयी नज़रें उठ नहीं पाती,
विश्वास काली पट्टियाँ बाँध 
निकालता है जुलूस 
और स्त्रियां.....
अपने शरीरों से गायब हो जाती हैं ....

(image credit shutterstock)

टिप्पणियाँ

  1. एक नुकीली चोट उग आती है
    बलत्कृत स्त्री के चेहरे पर
    तभी तो
    छुपाती है उसे शून्य में
    उसे दिखते हैं कैक्टस
    प्रश्नचिन्ह लगाने वालों की जबान पर
    सता दी जाती है
    वो गायब होने की हद तक
    .......
    बहुत मर्मस्पर्शी प्रयास समाज का वीभत्स चेहरा दिखाने का।

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जाकी रही भावना जैसी.... : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  3. गलत है तेरा यु चुप होना
    बनो नागिन डसो आज
    दण्ड दे दो पापी को
    आज उसके पाप का
    बनो आज नागिन तुम काली
    पड़ेगा तुम्हे नागिन सा फुफकारना

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  5. उत्तम भाव और पंक्ति "बलात्कार होता है सामाजिक मूल्यों का"...धन्यवाद।

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