शून्य हैं हम
हर गिरता हुआ पत्त्ता
करता है शाख़ से बेपनाह मोहब्बत,
होता है उदास अपने विलग होने से,
शाख़ भी मनाती है शोक;
रोती है, उदास होती है,
रोती है, उदास होती है,
देखती है जमीं पर उन्हें मरते हुए.....
एक दिन समझ लेती है वो भी
धोखा नहीं.... समय का दस्तूर है
कि छूट ही जाते हैं अपने
कभी न कभी....
उम्र और ज़िंदगी
मेहरबान नहीं रहती हमेशा,
समय करता है सवाल
जवाब भी खुद लिखता है.....
हम तो बस
शून्य हैं....
समय की दहाइयों के मोहताज
शाख़ से गिरे पत्तों की मानिंद
कभी ऊपर....
कभी नीचे ....
(चित्र साभार google)
सुनो न
जवाब देंहटाएंकि शून्य में संगीत गढ़ते हैं
रात के अंधेरों से
प्रणय की बतिया करते हैं,
हर जाने वाले पल को
बेहिसाब जीते हैं
चेहरे की झुर्रियों वाले चित्र में
रंग भरते हैं।
बहुत ख़ूबसूरत लिखा है।
सटीक एवम सार्थक।
छूट ही जाते हैं अपने
जवाब देंहटाएंकभी न कभी....
उम्र और ज़िंदगी
मेहरबान नहीं रहती हमेशा,
समय करता है सवाल
जवाब भी खुद लिखता है.....
तथ्यपरक सत्य। यही मिलना बिछडना, खुशी शोक जीवन को गतिशील बनाते हैं। स्थिर जल तो खारा होता है बहता दरिया इक उन्माद लिए प्यारा होता है।
सुन्दर रचना हेतु बधाई।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंलाजवाब शब्द चयन
बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिये
Bahut sundar rachna
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