दूर हूँ....कि पास हूँ


मैं बार-बार मुस्कुरा उठता हूँ 
तुम्हारे होंठो के बीच,
बेवज़ह निकल जाता हूँ तुम्हारी आह में,
जब भी उठाती हो कलम
लिख जाता हूँ तुम्हारे हर हर्फ़ में,
कहती हो दूर रहो मुझसे....
फ़िर क्यों आसमान में उकेरती हो मेरी तस्वीर?
संभालती हो हमारे प्रेम की राख; 
अपने ज्वेलरी बॉक्स में,
दूर तो तुम भी नहीं हो ख़ुद से
फ़िर मैं कैसे हो सकता हूँ?
तुम्हारे तलवे के बीच
वो जो काला तिल है न;
मैं वंही हूँ,
निकाल फेंको मुझे अपने वज़ूद से, 
या यूँ ही पददलित करती रहो,
उठाओगी जब भी कदम,
तुम्हारे साथ -साथ चलूंगा,
और तुम!
धोते समय अपने पैर,
मुस्कुराओगी कभी न कभी.

#अपर्णा बाजपेई

(Image credit to dretchstorm.com)




टिप्पणियाँ

  1. वाह क्या बात है
    कैसे दूर रहोगे हम से हम तो उतरे हैं वजूद मे आपके।
    उम्दा बेहतरीन।

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  2. बेहतरीन 👌👌👌 हार्दिक बधाई।

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  3. आपके ब्लॉग तक पहुंचने का मार्ग चर्चा मंच को आभार.

    बहुत अच्छी रचना है

    तिल वो भी पगथली में
    किसी के हर पहलू में हर वक्त साथ रहना. गजब शय है. कोई केसे नकार सकता है किसी के वजूद को तब.

    नई दिशा के साथ अद्भुत लिखावट.

    मेरा भी एक खुबसुरत ब्लॉग है
    आईये मिलकर साहित्य की रचना करते है.

    http://rohitasghorela.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय/आदरणीया हमें अतिप्रसन्नता हो रही है आपको यह अवगत कराते हुए कि आपके द्वारा पठित आपकी रचना का पाठ को 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक के "लोकतंत्र" संवाद मंच पर लिंक किया गया है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/




    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. बहुत सुन्दर....
    उठाओगी जब भी कदम,
    तुम्हारे साथ -साथ चलूंगा,
    और तुम!
    धोते समय अपने पैर,
    मुस्कुराओगी कभी न कभी.
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

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