पूर्ण विराम कंहा है!


एक नृशंस कालखंड दर्ज हो रहा है इतिहास में
            भीड़ की तानाशाही और रक्तिम व्यवहार
ताकत का अमानवीय प्रदर्शन
क़ानून की धज्जियाँ उड़ाता शाशन-प्रशासन....

हिंसा हथियार है और अविवेक मार्गदर्शक
खौफ़नाक मंसूबे उड़ान भर रहे हैं
ये हम किस युग में जी रहे हैं!
किसका ज़्यादा खून बहा
किसकी ज्यादा हुयी हार,
कौन बैठा है कुर्सी पर
कौन छील रहा घास,

बर्बर है सोच....
मौत का बदला मौत!

क्या मौत के बाद भी मरता है वक़्त?
चुकती हैं रक्त पिपासु आदतें?
पूर्ण विराम खोज रही हूँ
जाने कंहा चला गया....

(Image credit google)

टिप्पणियाँ

  1. वाह्ह्ह....अपर्णा जी क्या बात है...जोरदार अभिव्यक्ति... समसामयिक परिस्थितियों में एक संवेदनशील कवियित्री की स्ववाभाविक प्रतिक्रिया👌

    जवाब देंहटाएं
  2. सादर आभार श्वेता जी, आजकल का माहौल और कुछ सोचने ही नहीं दे रहा।
    उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. एक अप्रत्याशित पूर्ण विराम की अविराम तलाश! बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. समाज की दिशा आज के नेता और देश को तोड़ने वाली ताकतीं पे करारा प्रहार ... पर अब जो दिशा निर्धारित हो चुकी है उसे बदलना शायद मुश्किल ही हो अब ...
    समाज को जागरूक करती रचना ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय नासवा जी, आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है। ब्लॉग पर आने और उत्साह वर्धन के लिए सादर धन्यवाद

      हटाएं
  5. प्रिय अपर्णा --- आपकी लेखनी से समाज को आइना दिखाती एक महत्वपूर्ण सराहनीय रचना अस्तित्व में आई है | खतरनाक इरादों की उड़ान समाज और देश का सुख चैन छिन्न - बिन्न कर रही है | अगर यही उड़ान मानवता के हित में होती तो कितना अच्छा होता ? आपकी ओजपूर्ण लेखनी से साहित्य जगत को बड़ी आशाएं हैं | मेरा प्यार और शुभकामनायें |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय रेनू दी, किन शब्दों में आपका आभार प्रकट करूं समझ नहीं आता।
      आपका स्नेह और आशीष आपकी प्रतिक्रिया में साफ़ झलकता है। बहुत बहुत आभार

      हटाएं
  6. निशब्द! ऐसी रचनाऐं सोच कर नही लिखी जाती मन का आक्रोश खुद शब्द बन स्याही मे ढलते हैं एक संवेदनशील मन पर न जाने अथाह प्रहार हुवा होगा जो ऐसी चिंगारी निकली, सच सोचनीय वस्तु स्थिति जो हाथ से निकती जा रही है अपनी जड़ों को खुद काटता समाज जाने कंहा जायेगा, लहू किसी का भी बहो है तो आदम का ही कौन समझाए.
    अपर्णा आपकी इस रचना को मै सार्थक संवेदनशील रचनाआओं मे सर्वोपरी स्थान पर रखती हूं इपकी लेखनी पर मां शारदा दुर्गा बन कर अवतरित हुई है।
    साधुवाद।
    ऐसी धारदार रचनाऐं लिखती रहें "शायद कुछ जागृति आ जाऐ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय कुसुम दी,
      आप सबका आशीष ही मेरा संबल है। इस प्रकार जब आप लोग प्रशंशा भरे शब्दों में अपना आशीर्वाद देते हैं तो मन में खुशी की तरंग दौड़ जाती है।
      आप सब का स्नेह और आशीर्वाद इसी प्रकार मिलता रहे।
      सादर

      हटाएं
  7. कुछ मत खोजो।
    अगर कुछ न कर सको तो कम से कम जागरूक करने का काम करती चलो। बहुत से लोग सहमत होंगे फिर कारवां बनेगा।
    बहुत सुदर कृति है।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुन्दर रचना
    एक सार्थक रचना और अप्रतिम भाव। लाजवाब !!!

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रचलन बन चुका है अब ये । प्रारंभ में किसी एक गलत कदम का साथ देना...आगे के लिए ऐसी ही और स्थिति के लिए हमें तैयार रहना होगा । क्योकि ये एक आदर्श उदाहरण बन जाता है विरोध करने का । पिछले गलत कर्म को लेकर वर्तमान के गलत को सही साबित करना....किसी भी प्रकार से सही नही है । लेकिन ऐसा बहुत कोई कर रहें है ।
    पर ऐसी स्थिति के लिए पूर्ण रूप से हम ही जिम्मेदार है....प्रारंभ में ही अगर प्रखर रूप से हम गलत को गलत कहते, बिना लाग-लपेट के...चाहे सामने वाला कोई भी हो - हमारे खातिर लड़ रहा हो या अन्य के खातिर ।
    खैर ! अब इस स्थिति को हमें ही मिलकर ठिक करना होगा ।
    अपर्णा जी, आपने बहुत हद तक मार्गदर्शित किया ।

    जवाब देंहटाएं
  10. प्रकाश जी आपकी प्रतिक्रिया मूल्यवान है। ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
    बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. बहुत ही सुन्दर...धारदार अभिव्यक्ति....
    हृदयस्पर्शी.....
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सुधा जी, आप हमेशा प्रोत्साहित करती है.बहुत बहुत शुक्रिया
      सादर

      हटाएं
  12. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मृत्यु के बाद एक पल

आहिस्ता -आहिस्ता

प्रेम के सफर पर