मैंने देखा है.... कई बार देखा है
मैंने देखा है,
कई बार देखा है,
उम्र को छला जाते हुए,
बुझते हुए चराग में रौशनी बढ़ते हुए,
बूढ़ी आँखों में बचपन को उगते हुए
मैंने देखा है...
कई बार देखा है,
मैंने देखा है
बूँद को बादल बनते हुए,
गाते हुए लोरी बच्चे को
माँ को नींद की राह ले जाते हुए,
मैंने देखा है,
कई बार देखा है...
एक फूल पर झूमते भंवरे को;
उदास हो दूसरी शाख़ पर मंडराते हुए,
सूखते हुए अश्क़ों को
गले में नमी बन घुलते हुए,
मैंने देखा है
कई बार देखा है....
शब्द को जीवन हुए
कंठ को राग बन बरसते हुए,
उँगलियों को थपकी बन
कविता की शैया पर सोते हुये,
मैंने देखा है.....
कई बार देखा है
जब जब देखती हूँ कुछ अनकही बातें
लगता है जैसे
कुछ भी नहीं देखा है...
कुछ भी नहीं देखा है ...
(Image credit to Pinterest)
(Image credit to Pinterest)
वाह...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
सादर
आदरणीय दी, आपकी वाह हज़ार शब्दों से भी ज्यादा वज़नी है। बहुत बहुत आभार
हटाएंसादर
वाह्ह्ह..वाह्ह्.।बहुत सुंदर लाज़वाब रचना अपर्णा जी।
जवाब देंहटाएंहाँ मैंने देखा.है
जिंदगी को
उदासी का गीत गाते हुये
हँसकर मौत को बातें करते
दर्द को प्यार से धड़कन सहलाते हुये।
आदरणीय श्वेता जी,हृदयतल से आपका अति आभार ।
हटाएंसादर
बहुत सी चीजें जिंदगी में पहली बार ही होती हैं
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ देख चुके
बहुत कुछ देखना बाकी है।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 16 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुक्रिया पम्मी दी, मेरी रचना को मान देने के लिए।
हटाएंसादर
बहुत सुंदर अपर्णा जी :-)
जवाब देंहटाएंवाह. बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!बहुत खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंमैंने देखा है,
जवाब देंहटाएंकई बार देखा है...
एक फूल पर झूमते भंवरे को;
उदास हो दूसरी शाख़ पर मंडराते हुए,
सूखते हुए अश्क़ों को
गले में नमी बन घुलते हुए
बहुत सटीक, सुन्दर....
वाह!!!
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.05.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2973 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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