आदमी होने का मतलब


मैं एक आदमी हूँ 
मौत से भागता हुआ 
भरमाता हुआ ख़ुद को 
कि मौत कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी मेरा....

मैं एक कसाई हूँ,
मौत का रोज़गार करता हुआ 
ज़िंदा हूँ अपनी संवेदनाओं समेत
कटे हुए जानवरों की अस्थियों में।

मैं एक रंगरेज़ हूँ
रंगता हूँ मौत के सफ़ेद रंग को 
लाल पीले उत्सवी रंगों में
मेरी दुनिया की दीवारें हैं
झक्क सफ़ेद.... कि मैं सिमटा हूँ मात्र कपड़ों तक..

कहता है आदमी 
कि मैं सिर्फ आदमी हूँ
जबकि आदमी होने से पहले 
वह आदमी बिलकुल नहीं था।

पार कर रहा था वह 
जनन की संधि
गर्भ की सीमा 
पालन का सुख 
संस्कारों की संकीर्णता 
भावुकता की घाटी 
उल्लास की माटी,

सब कुछ पार कर लेने के बावजूद 
आदमी तलाशता है सुरक्षा कवच 
कि अतीत को भूल भविष्य के डर में
मुब्तिला है आदमी ।

(Image credit google)





टिप्पणियाँ

  1. डर इंसान को प्रेरित करता है सुरक्षा कवर बनाने को ... पर जब इंसान भौतिक चीज़ों में रहता है तो भागता है सोचता नहीं अंतिम समय के बारे में ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय नासवा जी, बहुत बहुत आभार कविता के अर्थ को व्यापकता देने के लिए।
      सादर

      हटाएं
  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.06.18 को चर्चा पंच पर चर्चा - 3001 में दिया जाएगा

    हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट