मौत का सौदा
हाशिये पर खड़े लोग,
प्रतीक्षारत हैं अपनी बारी की,
उनकी आवाज़ में दम है,
सही मंतव्य के साथ मांगते हैं अपना हक़,
कर्ज के नाम पर बंट रही मौत को
लगाते हैं गले,
अपनी ही ज़मीन पर रौंद दिये जाते हैं;
कर्ज लेकर खरीदे गए ट्रैक्टर के नीचे,
अपने ही खेत में उगाया गया गन्ना,
खींच लेता है ज़िंदगी का रस,
फसल और परती जमीन दोनों ही
बनी हैं गले की फांस....
कि किसान के लिए नयी नयी योजनाएं ला रही है सरकार
मज़दूर को पलायन
किसान को मौत की रेवड़ी
स्त्री के लिए कन्यादान
....
सब वस्तुएं ही तो हैं,
ठिकाने लगानी ही होंगी,
सजाना है नया दरबार
विकास अपरंपार
हाशिये के लोगों को केंद्र में लाना है,
विकास की गंगा में गरीबों को बहाना है,
एक आदमी की मौत की कीमत
तुम क्या जानो....
बस एक हाँथ रस्सी ,
एक चुटकी ज़हर
और...सरकार के खोखले वादे ....
#AparnaBajpai
#AparnaBajpai
(Image credit google)
बहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना